वित्तीय बाजारों की चमक ही एकमात्र पहलू है, जिस पर भारत के आर्थिक उदय का सारा कथानक टिका हुआ है। वरना, निवेश-उत्पादन-वितरण की वास्तविक अर्थव्यवस्था किसी कोण से चमकती नजर नहीं आती। अब वित्तीय बाजारों पर भी ग्रहण के संकेत हैं।
अक्टूबर में विदेशी पोर्टपोलियो निवेशकों (एफपीआईज) ने भारतीय बाजारों से लगभग 94,000 करोड़ रुपये निकाल लिए। यह अभूतपूर्व है। इसके पहले किसी एक महीने में एफपीआईज ने इतनी बड़ी निकासी नहीं की थी। कोरोना महामारी ने जब दस्तक दी थी, तब मार्च 2020 में इन निवेशकों ने 61,973 करोड़ रुपये निकाले थे, जो अब तक का रिकॉर्ड था। ताजा निकासी का नतीजा हुआ कि अक्टूबर में भारतीय शेयर बाजार सूचकांक में आठ प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। लाजिमी है कि इस घटनाक्रम ने भारत के वित्तीय प्रबंधकों की चिंता बढ़ाई है। आखिर, वित्तीय बाजारों की चमक ही एकमात्र पहलू है, जिस पर भारत के आर्थिक उदय का सारा कथानक टिका हुआ है। वरना, निवेश-उत्पादन-वितरण की वास्तविक अर्थव्यवस्था किसी कोण से चमकती नजर नहीं आती।
उलटे अब तो केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भी उपभोग एवं मांग गिरने की हकीकत को मान लिया है। अक्टूबर में वास्तविक अर्थव्यवस्था से जुड़े कारोबारी और यहां तक कि वित्तीय अखबार भी यह कहने को मजबूर हुए कि भारत में मध्य वर्ग सिकुड़ रहा है। जबकि दुनिया में जो भी देश विकसित हुए है, उनकी आर्थिक समृद्धि मध्य वर्ग के विस्तार पर टिकी रही है। भारत में अब सामने यह है कि एकमात्र चमकते पक्ष पर भी ग्रहण लग रहा है। जानकारों ने इसके दो कारण बताए हैं। पहला यह कि भारतीय शेयर ओवरवैल्यूड हैं- यानी उनकी स्वाभाविक कीमत जितनी होनी चाहिए, उससे ज्यादा कर दी गई है।
दूसरा, यह कि चीन प्रोत्साहन पैकेज देकर अपने शेयर बाजारों को संभाल रहा है, जिससे विदेशी निवेशकों को वहां पैसा लगाना ज्यादा फायदेमंद दिखने लगा है। नतीजतन, वे शेयर बाजार के अलावा ऋण बाजार से भी लगभग साढ़े चार हजार करोड़ रुपए निकाल कर ले गए। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि क्या इस महीने या आने वाले महीनों में ट्रेंड पलटता है। ऐसा नहीं हुआ, तो खासकर 2020 के बाद से शेयर बाजारों में बढ़ती गई चमक को बनाए रखना लगभग असंभव हो जाएगा। छोटे निवेशकों को इस क्रम में जो नुकसान हो रहा है, वह अलग है। कुल मिलाकर भारत के आर्थिक प्रबंधकों के सामने एक कठिन चुनौती आ खड़ी हुई है।