देशवासी यह तो समझने की अब बेहतर स्थिति में हैं कि चीन के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार का क्या रुख है, मगर उनके एक बड़े हिस्से के मन में जो सवाल और संदेह हैं, उनका निवारण नहीं हुआ है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने India china के रिश्तों के बारे में संसद को जानकारी दी। बताया कि दोनों देशों के संबंध में सुधार हुआ है, सीमा पर आमने-सामने तैनात सेनाओं को वहां से हटाने का काम पूरा हो चुका है, और अब अगली प्राथमिकता सुनिश्चित करना है कि चीन ने सीमापार अपनी सेना का जो भारी जमाव कर रखा है, उसे वह हटाए। उन्होंने चीन से रिश्तों के बारे में भारत की तरफ से तीन सिद्धांतों को दोहरायाः दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान एवं पालन करें, दोनों में से कोई भी देश एकतरफा ढंग से यथास्थिति को बदलने का प्रयास ना करे, और अतीत में हुए समझौतों एवं बनी सहमतियों का दोनों पक्ष पूरा आदर करें।
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विदेश मंत्री ने यह नहीं बताया कि India china से अब तक जो वार्ताएं हुई हैं, उनमें इन सिद्धांतों पर चीन की क्या प्रतिक्रिया रही है। उन्होंने नेहरू सरकार के समय भारत ने जो जमीन चीन के हाथों गंवाई, उसका जिक्र किया, लेकिन सवाल पर सफाई नहीं दी कि क्या अप्रैल 2020 में चीनी सेनाएं ने उन इलाकों में घुसी थीं, जिन पर तब तक भारत का नियंत्रण था? जाहिर है, उन्होंने यह भी नहीं बताया कि क्या एलएसी पर अप्रैल 2020 के पहले की स्थिति बहाल हो गई है? संभवतः इन पहलुओं पर देश में मौजूद संदेह को दूर करने में अधिक सफलता मिलती, अगर केंद्र इस मुद्दे पर पूरी बहस के लिए राजी होता।
जिन मुद्दों पर बहस के लिए विपक्ष ने संसद की कार्यवाही रोक रखी थी, उनमें एक यह भी था। चूंकि बहस नहीं हुई, इसलिए भारत-चीन संबंध पर सरकार की समझ एवं उसका पक्ष तो सामने आया, लेकिन इस मुद्दे पर जो दूसरी समझ रही है, उसकी अभिव्यक्ति संसद में नहीं हुई। इस तरह देशवासी यह तो समझने की अब बेहतर स्थिति में हैं कि चीन के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार का क्या रुख है, मगर उनके एक बड़े हिस्से के मन में जो सवाल और संदेह हैं, उनका निवारण नहीं हुआ है। इसलिए बेहतर होता, सरकार इस मसले पर पूरे बहस के लिए तैयार हो जाती।