अमेरिकी पत्रिका को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा- ‘यह मेरा विश्वास है कि सीमा पर लंबे समय से जारी स्थिति का हल हमें तुरंत निकालना चाहिए, ताकि अपने द्विपक्षीय संबंधों में आई असामान्यता को हम पीछे छोड़ सकें।’
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ताजा बयान को चीन के बारे में भारत के रुख में एक बड़े बदलाव का संकेत माना जाना चाहिए? चार साल से चल रहे तनाव के बाद अब मोदी मेल-मिलाप के मूड में दिख रहे हैं। मोदी ने ये टिप्पणियां एक अमेरिकी पत्रिका को दिए इंटरव्यू में की हैं। इससे उनकी बातों का महत्त्व और बढ़ जाता है। इसके अलावा यह बयान उन्होंने उस समय दिया है, जब देश में आम चुनाव का माहौल गर्म है। ऐसे मौके पर अनुमान यही होता है कि सरकार- खासकर अगर वह भाजपा की हो, तो पड़ोसी देशों के मामले में अधिक गरम रुख अपनाएगी।
यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि पूर्वी लद्दाख में भारतीय इलाकों में चीन की कथित घुसपैठ को विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बना रखा है। इसके बावजूद अब मोदी ने भारत-चीन सीमा पर की ‘असामान्य स्थिति’ से आगे निकलने पर जोर दिया है। न्यूजवीक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में मोदी ने कहा कि भारत और चीन के संबंध इस इलाके और सारी दुनिया के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि कूटनीतिक एवं सैनिक स्तरों पर सकारात्मक एवं रचनात्मक द्विपक्षीय संपर्क के जरिए दोनों देश सीमा पर टिकाऊ शांति बहाल कर सकते हैं।
उन्होंने कहा- ‘यह मेरा विश्वास है कि सीमा पर लंबे समय से जारी स्थिति का हल हमें तुरंत निकालना चाहिए, ताकि अपने द्विपक्षीय संबंधों में आई असामान्यता को हम पीछे छोड़ सकें।’ अब ये देखने की बात होगी कि मोदी के इस रुख पर चीन से क्या प्रतिक्रिया आती है। पिछले कुछ समय से चीन ने खासा आक्रामक रुख अपना रखा है।
अभी कुछ रोज पहले ही उसने अरुणाचल प्रदेश में स्थित स्थलों के नाम बदले हैं। इस तरह वह अरुणाचल पर अपना दावा मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। इस बात पर ध्यान दिया गया है कि चीन की इन हरकतों पर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया नरम रही है। अब तक भारत के ऐसे रुख से चीन के रवैये पर कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ है। क्या अब प्रधानमंत्री की टिप्पणियों को वहां सकारात्मक ढंग से लिया जाएगा?