सीधा समाधान यही है कि मोदी और शी के बीच सहमति बनने के चीनी दावे का भारत सरकार दो-टूक लहजे में खंडन करे। या अगर सचमुच कोई सहमति बनी थी, तो फिर देश को बताया जाए कि वह क्या थी?
चीन के यह दावा करने के 24 घंटों के बाद भी भारत सरकार की तरफ से कोई खंडन जारी नहीं हुआ है कि पिछले वर्ष में जी-20 के बाली शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच आपसी रिश्तों को स्थिरता देने के मुद्दे पर सहमति बन गई थी। चीन ने यह दावा दक्षिण अफ्रीका में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल और चीन के अब फिर से विदेश मंत्री बन चुके वांग यी के बीच हुई बातचीत के बाद किया। ये दोनों अधिकारी ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में भाग लेने दक्षिण अफ्रीका गए हैं। भारतीय मीडिया के ज्यादातर हिस्सों में भारत की तरफ से जारी बयान के आधार पर डोवाल की इस टिप्पणी को सुर्खियों में लाया गया है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर की घटनाओं ने आपसी भरोसे को क्षीण कर दिया है।
मगर चीन का मोदी-शी के बीच सहमति का दावा विवादास्पद है। बाली में मोदी एक वीडियो में शी से मुलाकात करते देखे गए थे। लेकिन तब भारत सरकार की तरफ से यही कहा गया था कि दोनों नेताओं ने सिर्फ शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया। जबकि अब चीन ने जो बयान जारी किया है, (अगर उसमें कही गई बात सच है, तो) उससे संकेत मिलता है कि बाली में दोनों नेताओं के बीच आपसी संबंध के मसले पर बातचीत हुई थी। यह मामला विवादास्पद इसलिए भी है कि बाली शिखर सम्मेलन पिछले साल नवंबर में हुआ था। उसके आठ महीनों के बाद तक चीन की तरफ से भी इस बारे में कुछ नहीं कहा गया। तो प्रश्न है कि अब चीन ने ऐसा दावा क्यों किया है? क्या इसके जरिए उसने भारत पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है? चीन के मामले में नरेंद्र मोदी सरकार का जो रुख रहा है, उसके मद्देनजर इस दावे से उसके लिए निश्चित रूप से असहज स्थिति पैदा हुई है। इसका सीधा समाधान यही है कि सरकार दो-टूक लहजे में चीनी दावे का खंडन करे। या अगर सचमुच कोई सहमति बनी थी, तो फिर देश को बताया जाए कि वह क्या थी?