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कनाडा में बढ़ती मुश्किलें

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ऐसा लगता है कि हालिया घटनाओं की रोशनी में कनाडा और उसके साथी देशों में राय बनी है कि भारत का अंदरूनी सांप्रदायिक टकराव अब निर्यात होकर उनके यहां पहुंच रहा है, जिससे आगे चल वहां कानून-व्यवस्था की बड़ी चुनौती पैदा हो सकती है।

संकेत साफ हैं। चार नवंबर को कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में हिंदू समुदाय के लोगों ने जो शक्ति प्रदर्शन किया, उसने वहां के अधिकारियों के कान खड़े कर दिए हैँ। संभवतः इसी कारण उनका रुख सख्त हो गया है। इसकी पहली मिसाल ब्रैम्पटन के मेयर की सक्रियता में दिखी। स्पष्टतः उनकी ही पहल का परिणाम था कि गुरुद्वारों ने खालिस्तानी सिखों की तरफ हिंदू मंदिर के बाहर हुए उग्र प्रदर्शन की निंदा की। दूसरी तरफ हिंदू मंदिर प्रबंधन ने अपने मुख्य पुजारी को निलंबित किया, जिनके “हेट स्पीच” के वीडियो वायरल हुए थे। इसके एक ही दिन बाद खबर आई कि मंदिर प्रबंधन ने पुजारी से माफी पत्र लेकर पुजारी को बहाल कर दिया है।

उधर उसी रोज इलाके पुलिस ने एलान किया कि भीड़ को भड़काने और कथित नफरती भाषण देने के आरोप में हिंदू समुदाय के तीन ‘नेताओं’ को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारियों ने और गिरफ्तारियों की संभावना जताई है। चर्चा है कि जिन भारतीय आव्रजकों के दस्तावेज दुरुस्त नहीं होंगे, उन्हें कनाडा से वापस भी भेजा जा सकता है। ब्रिटेन के लीस्टर शहर में सितंबर 2022 में भारतीय और पाकिस्तानी मूल के बाशिंदों के बीच दंगे हुए थे। ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कुछ शहरों में हिंदू-सिख तनाव और झड़पों की खबरें रही हैं।

ऐसा लगता है कि इन तमाम घटनाओं की रोशनी में इन देशों में राय बनी है कि भारत का अंदरूनी सांप्रदायिक टकराव अब निर्यात होकर उनके यहां पहुंच रहा है, जिससे आगे चल वहां कानून-व्यवस्था की बड़ी चुनौती पैदा हो सकती है। गौरतलब है कि कनाडा की कार्रवाइयों को इन तमाम देशों का समर्थन हासिल है। उन देशों में बड़ी संख्या में रहने वाले भारतीय प्रवासियों के लिए यह चिंताजनक संकेत है। उनकी प्रतिष्ठा के लिए बड़ा जोखिम पैदा हो रहा है। भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता इस स्थिति को सुधारना होनी चाहिए। मगर नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकता देश के अंदर अपनी “मर्दाना” छवि को पुख्ता करने की बनी हुई है। इस कारण खासकर कनाडा से संवाद करने और दोनों समुदायों के बीच मेलमिलाप के लिए उनकी तरफ से पहल की संभावना न्यूनतम ही है।

By NI Editorial

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