निज्जर मामले में भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों पर चर्चा के लिए संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों के नेताओं एवं अन्य सभी राजनीतिक दलों की साझा बैठक बुलाने की विपक्ष की मांग पर केंद्र को तुरंत ध्यान देना चाहिए।
हकीकत है कि खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर के मामले में भारत के सामने मुश्किल स्थिति खड़ी हो गई है। अमेरिका ने दो टूक कहा है कि इस विवाद में वह कनाडा के साथ है। उसने भारत से कनाडा के आरोपों को गंभीरता से लेने को कहा है। ब्रिटेन ने भी ऐसा ही रुख अपनाते हुए भारत से कनाडा की जांच में सहयोग करने को कहा है। फाइव आईज गठबंधन में इन तीनों के अलावा शामिल अन्य दो देशों- ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी अब इस विवाद में सार्वजनिक टिप्पणी की है। उन्होंने भी स्पष्ट किया है कि वे कनाडा के आरोपों को गंभीरता से लिए जाने के पक्ष में हैं। कनाडा की विदेश मंत्री कह चुकी हैं कि इस मामले में भारत पर दबाव डलवाने के लिए उनका देश जी-7 से भी संपर्क करेगा।
साफ है कि निज्जर और गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामलों को अलग-अलग करके देखने और उन पर अलग रुख अपनाने की भारत की रणनीति कारगर नहीं हुई है। नतीजा है कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और विदेश संबंधों में तय प्राथमिकता के सामने गंभीर चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। ऐसे मौकों पर यह जरूरी है कि देश के अंदर संपूर्ण राजनीतिक आम सहमति बनी रहे। इस मकसद से संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों के नेताओं एवं अन्य राजनीतिक दलों की साझा बैठक बुलाने की विपक्षी मांग पर सरकार को तुरंत ध्यान देना चाहिए।
कांग्रेस की आशंका में दम है कि भारत-कनाडा के बिगड़ते संबंधों और कनाडा को कई अन्य देशों के मिले समर्थन से स्थिति और प्रतिकूल हो सकती है, जिसका असर “ब्रांड इंडिया” पर पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि सरकार इस मामले में अपने रुख से विपक्ष और सारे देश को अवगत कराए। सरकार के पास मौजूद सूचनाएं विपक्ष के साथ साझा की जानी चाहिए। आखिर देश की छवि की रक्षा सबकी जिम्मेदारी है। यह आवश्यक है कि इस मामले में सारा देश एक स्वर में बोले। लेकिन ऐसा तभी हो सकता है कि जब सरकार देश की प्रतिष्ठा की रक्षा में सबको हितधारक माने। अतः अपेक्षित है कि सरकार विपक्ष की मांग को सुने।