राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

तनाव बढ़ाने की रणनीति?

मुद्दा यह है कि अगर भारत पर यह गंभीर आरोप पांच देशों- अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड- के साझा सिस्टम के तहत लगा है, तो क्या बिना उन सभी से दो टूक बात किए भारत इस लांछन से मुक्त हो पाएगा?

नरेंद्र मोदी सरकार भारत वासियों को यह संदेश देना चाहती है कि कनाडा ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए, तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी। इस सिलसिले में अब भारत सरकार ने कनाडा के 41 राजनयिकों को 10 अक्टूबर तक देश छोड़ने के लिए कहा है। साथ ही चेतावनी दी है कि ये राजनयिक उस समयसीमा के बाद भी भारत में बने रहे, सरकार उन्हें मिला कूटनीतिक अभयदान वापस ले लेगी। खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर कनाडा के आरोप लगाने के बाद भारत की ओर से लिया गया यह एक और सख्त कदम है। बहरहाल, इससे भारत के क्या मकसद हासिल होंगे, यह साफ नहीं है। इस प्रकरण में अब तक यह साफ हो चुका है कि निज्जर हत्याकांड में भारत का हाथ होने का आरोप लगाने से पहले कनाडा ने फाइव आई गठबंधन में शामिल सभी देशों ने आपस में कथित साक्ष्य साझा किए थे। अमेरिका की तरफ से ऐसे अनेक बयान आ चुके हैं, जिनमें भारत से कनाडा की जांच में सहयोग करने को कहा गया है। बल्कि कनाडा स्थित अमेरिका राजदूत ने यह भी कहा था कि कनाडा को हत्याकांड में भारत के कथित हाथ की सूचना फाइव आई के खुफिया साझा करने के सिस्टम के तहत दी गई थी।

यह खबर आ चुकी है कि निज्जर हत्याकांड के बाद अमेरिकी एजेंसी एफबीआई ने अपने यहां कई सिख कार्यकर्ताओं को उनकी जान खतरे में होने संबंधी चेतावनी दी थी। तो प्रश्न है कि क्या भारत सरकार ने इस बारे में अमेरिका से स्पष्टीकरण मांगा है? मुद्दा यह है कि अगर भारत पर यह गंभीर आरोप पांच देशों- अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड- के साझा सिस्टम के तहत लगा, तो क्या बिना उन सभी से दो टूक बात किए भारत इस लांछन से मुक्त हो पाएगा? इस बारे भारत को तय यह करना है कि उसे लांछन-मुक्त होना है, या उन देशों से टकराव बढ़ाना है? अगर टकराव बढ़ाना सरकार ने उचित रणनीति माना है, तो फिर उसे यही सख्त रुख अमेरिका सहित बाकी देशों के खिलाफ भी अपनाना चाहिए। वरना, इसका प्रभाव घरेलू राजनीति तक सीमित रह जाएगा।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *