भारत रूस को ‘प्रतिबंधित तकनीकों’ का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। भारत से हुए निर्यात में माइक्रोचिप, सर्किट और मशीन-टूल्स शामिल हैं। पश्चिम का आरोप है कि इन वस्तुओं से रूस की ‘युद्ध मशीन’ को ताकत मिली है।
इस खबर को पश्चिम में खूब तव्वजो मिली है और इस पर पश्चिमी राजनयिकों की तीखी प्रतिक्रिया फिर सामने आई है। खबर है कि भारत रूस को ‘प्रतिबंधित तकनीकों’ का निर्यात करने वाला चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। भारत ने जिन वस्तुओं का निर्यात बढ़ाया है, उनमें माइक्रोचिप, सर्किट और मशीन-टूल्स शामिल हैं। पश्चिमी राजनयिकों का आरोप है कि इन निर्यातों से रूस की ‘युद्ध मशीन’ को ताकत मिली है। यह खबर प्रकाशित होने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इससे जुड़ी चिंताएं फिर से भारतीय अधिकारियों के सामने उठाई जाएंगी।
खबरों के मुताबिक भारत के जरिए रूस तक निर्यातों के पहुंचने के सवाल पर हाल के महीनों में अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के अधिकारियों ने अपना खास ध्यान केंद्रित किया है। अधिकारियों ने मीडिया से कहा है कि उन्हें और भी ज्यादा नाराजगी इस पर हुई है कि जब कभी उन्होंने अपनी चिंताएं बताईं, भारतीय अधिकारियों ने उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। इस कारण ही हाल में रूस से कारोबार करने वाली कई भारतीय कंपनियों पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए हैँ। फिलहाल भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बारे में कुछ कहने से इनकार किया है। लेकिन यह साफ है कि ‘सभी पक्षों से रिश्ता रखने’ की भारत सरकार की नीति अब पश्चिमी देशों को खासा चुभने लगी है। उनके रुख में एक तरह की तल्खी भी देखी जा रही है। इसे संभवतः कई माध्यमों से वे जता भी रहे हैं।
यह साधारण बात नहीं थी कि पिछले महीने जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका में थे, तभी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू के गुट की बात सुनने के लिए उसके नुमाइंदों को ह्वाइट हाउस आमंत्रित किया गया। उधर पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान जब मोदी और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो से मिले, तो ट्रुडो ने खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में अपना भारत विरोधी रुख पूरी उग्रता के साथ जताया। मुमकिन है कि रूस को निर्यात और पन्नू- निज्जर विवाद में आपसी संबंध देखना उचित ना हो, लेकिन पश्चिम के रुख में भारत के प्रति बढ़ती तल्खी साफ है।