अपेक्षित यह था कि शामिल दल अधिक गंभीरता से वस्तुगत सियासी हालात का जायजा लेंगे और कम-से-कम औपचारिक रूप से ही सही, इंडिया गठबंधन का अस्तित्व बनाए रखेंगे। मगर हलकी सफलता ने तमाम दलों में खुशफहमियां पैदा कर दीं।
संकेत पहले से थे, मगर दिल्ली विधानसभा चुनाव आते-आते यह साफ हो गया है। इंडिया गठबंधन महज लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों का सीटों का तालमेल भर था। आम चुनाव में भाजपा को कमजोर करने के फौरी मकसद के अलावा उसका कोई दीर्घकालिक संदर्भ नहीं था। पहले यह बात आम आदमी पार्टी ने कही थी। अब इसे राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने भी दोहरा दिया है। यह भी जाहिर है कि गठबंधन में जो दल शामिल हुए, उनमें से ज्यादातर के मन में कांग्रेस को लेकर एक तरह का द्रोह भाव है। कांग्रेस समर्थक इसे संबंधित राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस के हित-टकराव के रूप पेश करते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश और हरियाणा आदि में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का जो नजरिया सामने आया, उसकी इसमें कम भूमिका नहीं है।
फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मनमाने ढंग से एजेंडा तय कर लेने के रुख से भी अन्य दलों में असहजता पैदा हुई दिखती है। ऐसी असहजता के संकेत खुद कांग्रेस के भीतर से भी मिले हैं। मुमकिन है कि राजनीति को परदे के पीछे से सियासत को संचालित करने वाली पूंजीपति ताकतों का भी इसमें कुछ रोल हो। बहरहाल, जो कुल सूरत उभर रही है, वह भाजपा के अनुकूल है। पिछले लोकसभा चुनाव का अनुभव यह है कि गठबंधन का लाभ इसमें शामिल ज्यादातर दलों को मिला। कांग्रेस संभवतः सर्वाधिक लाभान्वित हुई। इसलिए अपेक्षित यह था कि ये दल अधिक गंभीरता से वस्तुगत सियासी हालात का जायजा लेंगे और कम-से-कम औपचारिक रूप से ही सही, गठबंधन का अस्तित्व बनाए रखेंगे। मगर हलकी सफलता ने तमाम दलों में खुशफहमियां पैदा कर दीं। कां
ग्रेस ‘जन नायक’ परिघटना की खुशफहमी का शिकार हो गई। इसलिए हरियाणा और महाराष्ट्र में उसने अक्खड़ रुख अपनाया। इसकी प्रतिक्रिया अब उसे झेलनी पड़ रही है। हालांकि तेजस्वी यादव ने कहा है कि बिहार में कांग्रेस से उनकी पार्टी का गठबंधन जारी है, लेकिन उनके अतीत के बयानों से उनका नजरिया अगले विधानसभा चुनाव में सीट बंटवारे के दौरान सहयोगी दलों को हाशिये पर रखने का नजर आया है। यह कांग्रेस के लिए चेतावनी है।