होंडा और निसान के विलय का फैसला विश्व कार बाजार के तेजी से बदले रूप की एक मिसाल है। बदलाव के कारण हैः कार उपभोक्ताओं के बीच ईवी की बढ़ी मांग और ईवी के बाजार में चीनी कंपनियों का छा जाना।
कभी होंडा और निसान कंपनियां कार बाजार का ज्यादा हिस्सा हासिल करने के लिए एक दूसरे से होड़ करती थीं। लेकिन अब इन दोनों जापानी कंपनियों ने आपस में विलय का एलान किया है। यह असाधारण घटना है। असल में यह विश्व कार बाजार के तेजी से बदले रूप की एक मिसाल है। इस परिवर्तन के दो प्रमुख आयाम हैः कार उपभोक्ताओं के बीच इलेक्ट्रिक से चलने वाली कारों (ईवी) की तेजी से बढ़ी मांग और ईवी के बाजार में चीन की कंपनियों- खासकर बीवाईडी का छा जाना।
पांच साल पहले शायद ही ये कोई सोचता था कि निम्न श्रेणी की मैनुफैक्चरिंग से आगे बढ़ते हुए चीन कार के बाजार पर भी अपना दबदबा बनने लगेगा। लेकिन आज ऐसा हो चुका है। इससे जर्मनी और जापान की कार निर्माता तमाम बड़ी कंपनियां अपने को दबाव में महसूस कर रही हैं। इन कंपनियों की महारत पेट्रोल/ डीजल/ गैस से चलने वाली कारों के निर्माण में रही है। मगर विश्व बाजार में ऐसी कारों की मांग तेजी से घटी है। ईवी के क्षेत्र में इन कंपनियों ने प्रगति की है, लेकिन कीमत के मोर्चे पर वे पिट रही हैं। चीनी कारें उनकी तुलना में इतनी सस्ती हैं कि स्वाभाविक रूप से खरीदार उनकी तरफ खिंच जाते हैं। नतीजतन, जर्मनी की कंपनी फॉक्सवागन की मुसीबत की खबरें सुर्खियों में रही हैं।
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यही हाल जापान और दक्षिण कोरियाई कंपनियों का है। चीन का बड़ा बाजार तेजी से उनके हाथ से निकला है। अमेरिका और यूरोप में आयात शुल्क में भारी बढ़ोतरी कर सरकारों ने उन कंपनियों की मदद की है, लेकिन यह काफी साबित नहीं हुआ है। विलय की रणनीति भी शायद नाकाफी ही हो। होंडा ने कहा है कि विलय का लाभ 2030 से पहले नहीं मिलेगा। लेकिन तब तक तकनीक और आगे निकल चुकी होगी। असल सवाल यह है कि मूल्य प्रतिस्पर्धा में चीनी कंपनियों को मिले लाभ का जवाब जब तक ये कंपनियां नहीं ढूंढतीं, ऐसे उपाय अपर्याप्त बने रहेंगे। अभी तो विलय प्रस्ताव को शेयर धारकों से मंजूरी दिलाने और विलय के परिणामस्वरूप श्रमिकों की छंटनी आदि जैसी बड़ी चुनौतियों से निपटना ही बाकी है।