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दांव पर है साख

हैरतअंगेज है कि आरोप अडानी ग्रुप पर लगे हों, या सेबी प्रमुख पर, भाजपा उनके बचाव में खड़ी हो जाती है। आखिर उसका क्या हित इनसे जुड़ा है? यह जरूरी है कि सत्ताधारी दल और केंद्र सरकार ऐसे मामलों में निष्पक्ष भूमिका अपनाएं।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने डेढ़ साल पहले अपनी एक रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें विदेशों में फर्जी कंपनियां बना कर उनके जरिए शेयरों के भाव को कृत्रिम रूप से बढ़ाने का इल्जाम भी था। ये आरोप भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की निगरानी और जांच के दायरे में आते थे। तब यह सवाल उठा था कि क्या सेबी अपना काम पूरी तत्परता से नहीं करती है? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सेबी पर विश्वास किया और उसके ही भरोसे पर हिंडनबर्ग के आरोपों को खारिज कर दिया। अब हिंडनबर्ग ने सीधे सेबी को घेरे में ले लिया है। उसने सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच और उनके पति पर अडानी ग्रुप की विदेशी फर्जी कंपनियों में हित रखने का आरोप लगाया है। यानी हिंडनबर्ग ने कहा है कि अडानी ग्रुप को संरक्षण देने में बुच दंपति का स्वार्थ था। मतलब यह कि सेबी प्रमुख ने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया। जाहिर है, इस आरोप के जरिए भारतीय वित्तीय बाजार की साख संदिग्ध करने की कोशिश की गई है।

बड़ा मुद्दा यह है कि जब नियमों के रखवाला ही आरोपों के घेरे में हो, तो संबंधित बाजार पर कोई निवेशक कैसे भरोसा करेगा? यहां ये बात अवश्य याद रखनी चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था की आज जितनी भी चमक है, वह वित्तीय बाजारों के भरोसे ही है। वरना, जमीनी अर्थव्यवस्था तो गहरे संकट का शिकार है। अब वित्तीय बाजारों पर भी ग्रहण लगा, तो देश के लिए उसके बेहद गंभीर नतीजे होंगे। यह हैरतअंगेज है कि आरोप अडानी ग्रुप पर लगे हों, या अब सेबी प्रमुख पर, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी उनके बचाव में खड़ी हो जाती है। आखिर उसका क्या हित इनसे जुड़ा है? यह जरूरी है कि सत्ताधारी दल और केंद्र सरकार ऐसे मामलों में निष्पक्ष भूमिका अपनाएं। उन्हें विपक्ष की इस मांग को स्वीकार करने में देर नहीं करनी चाहिए कि सारे प्रकरण की जांच एक संयुक्त संसदीय समिति करे। इससे अडानी ग्रुप और बुच को भी ऐसा मंच मिलेगा, जहां उनकी दी गई सफाई पर देश गौर करेगा। वरना, गहराते संदेह का राहु भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्रसता ही जाएगा।

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