शुरुआत से ही बहस उन मुद्दों पर मुड़ गई, जिन पर अमेरिकी मतदाताओं के बीच गहरा विभाजन है। हैरिस ने खुद को प्रगतिशील उम्मीदवार के रूप में पेश किया। ट्रंप ने अपने समर्थकों को यह बताया कि वे नहीं जीते, तो अमेरिका का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
अमेरिका में राष्ट्रपति पद के दोनों प्रमुख उम्मीदवारों की बहस में कौन जीता, इस बारे में राय बंटी हुई है। लिबरल मीडिया पर नजर डालें, तो वहां इस पर लेकर शक नहीं है कि कमला हैरिस भारी पड़ीं। लेकिन कंजरवेटिव खेमे में उलटी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। दोनों उम्मीदवारों ने बहस के लिए वे मुद्दे उठाए, जिन पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण से उन्होंने उम्मीद जोड़ी हुई है। मसलन, हैरिस ने गर्भपात के अधिकार पर जोर दिया, तो ट्रंप ने गैर-कानूनी आव्रजकों से अमेरिका के लोगों को पैदा हुए कथित खतरों का जिक्र किया।
फैक्ट चेकर्स ने ट्रंप के कई दावों को गलत साबित किया, लेकिन कंजरवेटिव खेमे में इससे उलटी प्रतिक्रिया हुई। वहां यह शिकायत देखी गई कि फैक्ट चेकर्स ने हैरिस के प्रति पक्षपात किया। उनके कथित गलत दावों की पोल उन्होंने लगे हाथ नहीं खोली। एक ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल में यही सबसे बड़ी मुश्किल होती है। उसमें हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया बंटी हुई होती है। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि ट्रंप अपने दावों और आक्रामक अंदाज से अपने समर्थकों के ध्रुवीकरण को किस हद तक मजबूत करने में सफल हुए।
कमला हैरिस और डॉनल्ड ट्रंप इस बहस से पहले यह कभी नहीं मिले थे। तो बहस शुरू होने से पहले हैरिस ट्रंप के पास गईं और मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। विश्लेषकों के मुताबिक इस कदम के साथ ही हैरिस ने बहस में बढ़त हासिल कर ली, क्योंकि चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप उनके रंग, नस्ल और लिंग को लेकर तीखी और कड़वी टिप्पणियां करते रहे हैं। शुरुआत से ही बहस उन मुद्दों पर मुड़ गई, जिन पर अमेरिकी मतदाताओं के बीच गहरा विभाजन है।
हैरिस ने बहस के दौरान खुद को भविष्य की ओर देखने वाली एक प्रगतिशील उम्मीदवार के रूप में पेश किया। ट्रंप ने अपने मेक अमेरिका ग्रेट अगेन के नारे को उठाया और अपने समर्थकों को यह बताया कि वे नहीं जीते, तो महाशक्ति के रूप अमेरिका का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। कुल मिलाकर दोनों उम्मीदवार अपनी ताकत पर खेले। इसका क्या असर हुआ, यह पांच नवंबर को ही जाहिर होगा।