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वादा कुछ और था

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आशा यह की जाती थी कि GST council meeting मौजूद शिकायतों का हल निकालेगी। लेकिन और उलझाने वाले फैसले हो रहे हैं- बिना इसका ख्याल किए कि बाजार में गायब हो रही मांग के पीछे एक कारण जीएसटी का वर्तमान ढांचा भी है।

केरामेलाइज्ड पॉपकॉर्न पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाने के फैसले की अर्थशास्त्रियों से लेकर सोशल मीडिया के आम यूजर्स ने ना सिर्फ आलोचना की है, बल्कि इसका मखौल भी उड़ाया है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की पिछले हफ्ते जैसलमेर में हुई बैठक में यह टैक्स लगाने का फैसला हुआ। जिस तरह का फैसला हुआ, उससे जाहिर है कि पहले से ही उलझी हुई इस कर व्यवस्था में और पेच पड़ जाएंगे। अब इस साधारण खाद्य पर लगने वाले कर का ढांचा देखिएः आप खाने के लिए तैयार नमक और मसालों से युक्त पॉपकॉर्न खरीदते हैं, तो उस पर पांच फीसदी जीएसटी लगेगा। लेकिन वही पॉपकॉर्न डिब्बाबंद होगा, तो 12 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। और केरामेलाइज्ड हुआ, तो जीएसटी 18 फीसदी हो जाएगा।

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केरामेलाइज्ड का अर्थ शक्कर के साथ उसे गर्म कर एक विशेष स्वाद प्रदान करना है। पॉपकॉर्न सिर्फ एक मिसाल है। GST council meeting में ऐसे उलझाऊ पहलू भरे-पड़े हैं। यह वाजिब आलोचना है कि ऐसे ढांचे के साथ इस कर व्यवस्था का मकसद ही परास्त हो जाता है। जब जीएसटी का प्रस्ताव भारत में रखा गया, तब कहा गया था कि इसका उद्देश्य सारे देश में हर वस्तु पर एक जैसा टैक्स लगाना होगा, ताकि देश के प्रवाहमय बाजार बन सके। मगर जो ढांचा सामने आया, एक उसमें जीएसटी की चार दरों का प्रावधान किया गया। फिर पॉपकॉर्न जैसी वस्तुएं भी हैं, जिन पर अलग-अलग दरों से टैक्स लगता है।

अगर ऐसी ही व्यवस्था चलानी है, तो फिर वैट सिस्टम क्या बुरा था, जिसमें वैल्यू ऐड होने के साथ टैक्स का स्वरूप बदलता था। उलटे इस कर व्यवस्था के तहत कारोबारियों को अनेक शर्तों और प्रक्रियाओं में उलझा दिया गया है, जिसका सूक्ष्म, लघु एवं मझौले व्यापारियों पर बहुत खराब असर पड़ा है। इन उलझाऊ प्रक्रियाओं से सरकार का खजाना जरूर भरता गया है, मगर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव प़ड़ा है। आशा यह की जाती थी कि जीएसटी काउंसिल इन शिकायतों का हल निकालेगी। लेकिन उलटे और पेचीदा फैसले हो रहे हैं- बिना इसका ख्याल किए कि बाजार में गायब हो रही मांग के पीछे एक कारण जीएसटी का वर्तमान ढांचा भी है।

By NI Editorial

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