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विषमता पर दो दृष्टियां

economic inequalityImage Source: ANI

पिकेटी का सुझाव है कि भारत को जीडीपी-टैक्स अनुपात में सुधार कर अतिरिक्त संसाधन इकट्ठा करना चाहिए। उसका निवेश मुफ्त स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने में किया जाना चाहिए। यही विकसित देश बनने का रास्ता है।

बढ़ती आर्थिक गैर-बराबरी पर राजधानी में एक गंभीर चर्चा हुई। इसमें दो नजरिए उभर कर सामने आए। एक नजरिये की नुमानंदगी भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने की। उन्होंने कहा कि न्यायपूर्ण आर्थिक विकास को मापने का पैमाना आमदनी की गैर-बराबरी कम करना नहीं, बल्कि गरीबी घटाना है। उन्होंने दावा किया कि पूंजी पर टैक्स लगाने से निवेश नहीं बढ़ेगा, बल्कि पूंजी का पलायन शुरू हो जाएगा। उनका यह दावा भी दिलचस्प है कि समानता थोपने से सूक्ष्म एवं लघु व्यापार को अधिक क्षति पहुंचती है। ऐसी कोशिश को नागेश्वरन ने “सीमा लगाने का अत्याचार” बताया और कहा कि ऐसा करने पर छोटे कारोबारी छोटे ही रह जाएंगे।

‘गैर-बराबरी, आर्थिक वृद्धि एवं समावेशन’ विषय पर हुई इस चर्चा में दूसरा पक्ष विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी रख चुके थे। पिकेटी ने अपनी चिर-परिचित राय रखी कि भारत को जरूरत जीडीपी-टैक्स अनुपात को सुधारने की है। उनका सुझाव है कि भारत को सबसे धनी एक फीसदी लोगों पर दो फीसदी धन कर लगाना चाहिए जाए और आय कर व्यवस्था को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए। इससे इकट्ठा अतिरिक्त संसाधनों का निवेश मुफ्त स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को सशक्त करने में किया जाना चाहिए। यही विकसित देश बनने का रास्ता है। मगर नागेश्वरन की बात से साफ है कि भारत सरकार इस नजरिए से बिल्कुल सहमत नहीं है।

बहरहाल, चूंकि उन्होंने न्यायपूर्ण विकास को मापने का पैमाना गरीबों की संख्या में गिरावट को बताया, तो यह मुद्दा उठेगा कि आखिर गरीबी को मापने की कसौटी क्या हो? भारत सरकार ने सामान्यतः मान्य कसौटियों को ताक पर रखते हुए जो पैमाना अपनाया है, उसे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। सबसे पहले तो सरकारी आंकड़े ही संदिग्ध होते गए हैँ। उसे ठीक करने की जरूरत है। फिर बेहतर होगा, सरकार प्रति दिन प्रति व्यक्ति कैलोरी की उपलब्धता के पुराने पैमाने को आधार बनाए। उस पर देखा जाए, तो असल में गरीबों की संख्या बढ़ी है। फिर भी क्या नागेश्वरन कहने की स्थिति में हैं कि जिस सरकार के वे सलाहकार हैं, उसकी नीतियों से गरीबी में ह्रास हुआ है?

By NI Editorial

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