पहले चरण के मतदान में धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली के नेतृत्व वाला गठबंधन सबसे आगे रहा। दूसरे नंबर पर वामपंथी न्यू पॉपुलर फ्रंट रहा, जिसे 28 फीसदी वोट मिले। राष्ट्रपति मैक्रों के नेतृत्व वाले गठबंधन को 21 प्रतिशत से भी कम वोट मिले।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का संसदीय मध्यावधि चुनाव कराने का दांव उलटा पड़ा है। मैक्रों को आशा थी कि पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भी वे धुर दक्षिणपंथ का भय दिखा कर मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में सफल रहेंगे। मगर इस बार दांव कामयाब नहीं हुआ। नई संसद चुनने के लिए हुए पहले चरण के मतदान में धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली के नेतृत्व वाला गठबंधन 34 फीसदी वोट पा कर सबसे आगे रहा। दूसरे नंबर पर वामपंथी दलों का गठबंधन- न्यू पॉपुलर फ्रंट रहा, जिसे 28 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। मैक्रों के नेतृत्व वाले गठबंधन को 21 प्रतिशत से भी कम वोट मिले। फ्रांस की चुनाव प्रणाली के मुताबिक 577 सदस्यीय नेशनल असेंबली के जिन चुनाव क्षेत्रों में कोई उम्मीदवार 50 प्रतिशत से वोट हासिल नहीं कर पाता, वहां चुनाव प्रक्रिया दूसरे चरण में चली जाती है।
हालांकि कुल पंजीकृत मतदाताओं के बीच 12.5 प्रतिशत वोट हासिल कर चुके सभी उम्मीदवार दूसरे चरण के मतदान में भाग ले सकते हैं, मगर व्यवहार में पार्टियां आपस में नए सिरे से तालमेल कर लेती हैं, इसलिए हर चुनाव क्षेत्र में सामान्यतः वे दो उम्मीदवार ही मैदान में रह जाते हैं, जिन्हें पहले चरण में सबसे ज्यादा वोट मिले हों। इस बार भी पॉपुलर फ्रंट ने रविवार रात ही एलान कर दिया कि जहां उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर आएंगे, वहां से दूसरे चरण में चुनाव नहीं लड़ेगा, ताकि धुर दक्षिणपंथी गठबंधन को रोका जा सके। इसलिए सात जुलाई को होने वाले दूसरे चरण के बाद क्या सूरत उभरेगी, अभी यह तय नहीं है। मगर कंजरवेटिव रिपब्लिकन पार्टी ने नेशनल रैली को समर्थन देने की इच्छा जताई है, जिसे पहले चरण में 10 प्रतिशत वोट मिले। इसलिए अनुमान है कि मेरी ली पेन के नेतृत्व वाला धुर दक्षिणपंथी गठबंधन बहुमत के करीब पहुंच सकता है। ऐसा हुआ, तो यह ना सिर्फ फ्रांस, बल्कि पूरे यूरोपियन यूनियन (ईयू) के लिए बड़ा झटका होगा। इस नतीजे का साफ संदेश है कि जिस आर्थिक सहमति पर ईयू बना था, उसके प्रति अब बड़े देशों में भी मतदाताओं का रुख विद्रोही होने लगा है।