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वोट खरीदने की होड़

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freebies to win elections: राजनीतिक दल जिस रास्ते पर चले हैं, उससे साफ है कि और कर्ज लेकर ऋण चुकाने के अलावा महाराष्ट्र के सामने कोई विकल्प नहीं रहेगा।

साथ ही इन हालात का असर बुनियादी मानव विकास पर पड़ेगा। मगर फिलहाल सबको वोट खरीदने की चिंता है!

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अंतर कम, समानता ज्यादा नजर आई

महाराष्ट्र में दोनों प्रमुख गठबंधनों- भाजपा नेतृत्व वाले महायुति और महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (मविआ) ने घोषणापत्र जारी किए, तो उनमें अंतर कम, समानता ज्यादा नजर आई। अंतर सिर्फ सामाजिक- सांप्रदायिक मुद्दों पर है।

मसलन, महायुति ने धर्मांतरण रोकने का सख्त कानून बनाने का वादा किया है, तो मविआ ने जातीय जनगणना कराने और आरक्षण की 50 फीसदी सीमा को हटाने का वादा किया है। समानता के बिंदु मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकारी खजाने से धन लुटाने के उदार वायदे हैं।

लगता नहीं कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों पर हाल में चर्चित हुई पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की उस टिप्पणी का कोई असर हुआ है, जिसमें उन्होंने ऐसे वादे ना करने की सलाह दी थी, जिन्हें राजकोषीय स्थिति के मद्देनजर पूरा करना कठिन हो। बल्कि मविआ का घोषणापत्र जारी करने खुद खड़गे पहुंचे।

घोषणापत्र में महिलाओं को हर महीने 3,000 रु.

इस घोषणापत्र में महिलाओं को हर महीने 3,000 रु. और मुफ्त बस यात्रा की सुविधा देने, 18 साल उम्र पूरा करने पर हर युवती को एक लाख रुपए देने, किसानों के तीन लाख रु. तक के कर्ज माफ करने, नियमित कर्ज चुकाने के लिए उन्हें 50,000 रु. की प्रोत्साहन राशि, हर नौजवान को 4,000 रु. बेरोजगारी भत्ता और ढाई लाख खाली सरकारी पदों को भरने जैसे वादे हैं।

वैसे महायुति भी ऐसे वादे करने में पीछे नहीं है। उसने भी कर्ज माफी, ढाई करोड़ महिलाओं को मासिक 2,100 रुपये देने, दस लाख छात्रों को 10 हजार रु. की स्कॉलरशिप, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों का ट्यूशन फीस री-ईम्बर्स करने आदि जैसे वायदे अपने घोषणापत्र में शामिल किए हैं।

स्पष्टतः इन दोनों मोर्चों ने सीएजी की प्रदेश की राजकोषीय हालत के बारे में दी गई चेतावनी को सिरे से नजरअंदाज कर दिया है। सीएजी ने आगाह किया था कि राज्य को अगले सात वर्ष के अंदर 2.75 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना है।

राजनीतिक दल जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उससे साफ है कि और कर्ज लेकर ऋण चुकाने के अलावा राज्य के सामने कोई विकल्प नहीं रहेगा। साथ ही इन हालात का असर बुनियादी मानव विकास पर पड़ेगा। मगर फिलहाल सबको वोट की चिंता है!

By NI Editorial

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