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ये नैरेटिव भी दिखावटी?

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पर्यावरणविदों के मुताबिक 2001 में भारत ने वनों के वर्गीकरण के नियमों में बदलाव कर दिया था। पर्यावरणवादी संगठन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के मुताबिक सरकारी आंकड़ों में दिखाई गई वन वृद्धि मुख्य रूप से ‘वन’ की परिभाषा बदलने के कारण हासिल हुई है।

नेशलन ग्रीन ट्रब्यूनल (एनजीटी) जांच कर रहा है कि क्या सरकारी दावों के विपरीत भारत में प्राकृतिक जंगल तेजी से घट रहे हैं। सरकार ने यह कहानी दुनिया भर में फैलाई है कि पिछले दो दशकों में भारत के हरित क्षेत्र में भारी वृद्धि हुई है। एनजीटी में मई में दर्ज एक मामले में कहा गया कि सरकार का ये दावा गलत है। मुकदमे में कहा गया है कि पिछले 24 साल में भारत ने 23,000 वर्ग किलोमीटर पेड़ों का आवरण खो दिया है। इस आंकड़े का स्रोत ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच गया है, जो एक स्वतंत्र संगठन है और उपग्रह से ली गई तस्वीरों से विश्व भर के जंगलों समय में आंकड़े प्रकाशित करता है। हाल की तस्वीरों से पता चला कि 2013 से 2023 के बीच भारत में 95 फीसदी पेड़ों का नुकसान प्राकृतिक जंगलों में हुआ है। जबकि सरकारी आंकड़ों में दिखाया गया है कि 1999 से भारत का वन क्षेत्र बढ़ा है। सरकार की पिछली रिपोर्ट के अनुसार 2019 से 2021 के बीच वन और वृक्ष आवरण में 2,261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई।

सरकारी आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले पर्यावरणविदों का कहना है कि आंकड़ों में यह अंतर्विरोध इसलिए है, क्योंकि 2001 में भारत ने वनों के वर्गीकरण के नियमों में बदलाव कर दिया था। पर्यावरणवादी संगठन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के मुताबिक सरकारी आंकड़ों में दिखाई गई वृद्धि मुख्य रूप से ‘वन’ की परिभाषा बदलने के कारण है। नई परिभाषा में वनों के बाहर के हरे क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया है। इस मामले में भारत की साख दांव पर है। भारत ने 2070 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने का लक्ष्य घोषित करते हुए अपने वनों के आकार में बड़ी वृद्धि का वादा किया है। अगर एनजीटी में पर्यावरणवादी अपने केस को पुष्ट करने में सफल हो जाते हैं, तो भारत के इस दावे पर गंभीर सवाल उठ खड़े होंगे कि 2070 का लक्ष्य पाने की दिशा में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत की कुछ ऐसी कहानियां पहले भी तथ्यों की रोशनी में संदिग्ध हो चुकी हैं। क्या इस मामले में भी ऐसा ही होगा?

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By NI Editorial

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