राहुल गांधी ने एलान किया है कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर किसानों को स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक एमएसपी देगी। लेकिन जिस तदर्थ ढंग से यह घोषणा हुई है, उसे देखते हुए यह उम्मीद कम ही है कि कृषक समाज में इसको लेकर भरोसा पैदा होगा।
जिस रोज किसानों के ‘दिल्ली चलो’ अभियान से माहौल गरमाया और किसानों की मांगें फिर चर्चित हुईं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एलान कर दिया कि उनकी पार्टी सत्ता में आने पर किसानों को एमएस स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने का कानून बनाएगी। लेकिन जिस तदर्थ ढंग से यह घोषणा हुई है, उसे देखते हुए यह उम्मीद कम ही है कि कृषक समाज में इसको लेकर भरोसा पैदा होगा। आशा की जानी चाहिए कि राहुल गांधी ने किसानों के पूरे मांग पत्र पर गौर किया होगा। उसमें एमएसपी की मांग एक सिलसिले का हिस्सा है। किसान संगठन समझ चुके हैं कि उनकी समस्या की जड़ें उस आर्थिक दिशा में है, जिस पर देश पिछले साढ़े तीन दशकों से चल रहा है। इस दिशा पर चलते हुए एमएसपी की मांग को संपूर्ण रूप से लागू नहीं किया जा सकता है। ना ही कृषि के अलाभकारी बनते जाने की समस्या से निपटा जा सकता है। इसलिए किसानों ने अब यह मांग भी रखी है कि भारत डब्लूटीओ और अन्य मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकले।
डब्लूटीओ करार के तहत खाद्य सब्सिडी की सीमा लगाई गई है, जिसके रहते सार्थक एमएसपी नहीं दी जा सकती। चूंकि किसान संगठनों ने अपनी लड़ाई को बड़ा दायरा देने की जरूरत महसूस की है, इसलिए उन्होंने खेतिहर मजदूरों, दिहाड़ी मजदूरों, और ट्रेड यूनियनों से संबंधित मांगों को भी अपने मांग-पत्र का हिस्सा बनाया है। उन्होंने देश में सामाजिक सुरक्षा का प्रभावी ढांचा खड़ा करने की मांग भी की है, ताकि पूरे श्रमिक वर्ग को गरिमामय जिंदगी मिल सके। तो यह पूछा जाएगा कि मांग-पत्र और उसमें जो आर्थिकी सोच प्रतिबिंबित होती है, उस बारे में कांग्रेस पार्टी की क्या राय है। दरअसल, नीतियों का बिना कोई समग्र पुनर्मूल्यांकन किए सबसे चर्चित मांग को चुन कर उस पर वादा कर देने को महज एक चुनावी दांव के रूप में ही देखा जाएगा। इसलिए बेहतर होगा कि कांग्रेस इस बारे में अपनी पूरी सोच बताए। 16 फरवरी का किसानों एवं मजदूरों का साझा प्रतिरोध एक ऐसा मौका है, जिस दिन कांग्रेस इस दिशा में ठोस पहल कर सकती है।