कुल सूरत यह है कि नए उठे विवादों ने देश की चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षपता पर पहले जारी विवाद को और गरमा दिया है। अब सिर्फ खुले, सार्वजनिक संवाद से ही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।
देश की चुनाव प्रक्रिया पर फिर संदेह का साया गहरा गया है। मुमकिन है कि इस चर्चा का कोई तथ्यात्मक आधार ना हो, लेकिन जब कोई बात मीडिया की सुर्खियों में आए और विपक्ष के बड़े नेता उसको लेकर सवाल उठाएं, तो ऐसी चर्चाओं को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। वैसे भी उत्तर-पश्चिम मुंबई लोकसभा सभा क्षेत्र में मतगणना की परिस्थितियां संदिग्ध नजर आती है। जैसाकि शिव सेना के उद्धव गुट ने दावा किया है, उसके उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर 2200 वोट से आगे थे, लेकिन पुनर्मतगणना के बाद उन्हें 48 वोटों से पराजित घोषित किया गया। अब सामने आया है कि शिव सेना शिंदे गुट के विजयी उम्मीदवार रवींद्र वायकर का एक रिश्तेदार मोबाइल फोन के साथ मतगणना स्थल पर मौजूद था। हालांकि चुनाव अधिकारी ने उद्धव गुट के इस आरोप का खंडन किया है कि वोटिंग मशीनें उस फोन पर आने वाली ओटीपी से संचालित थीं, मगर इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है कि जब मतगणना स्थल पर मोबाइल फोन ले जाने की इजाजत नहीं होती, तो उस व्यक्ति को ऐसा करने की छूट क्यों दी गई?
महत्त्वपूर्ण यह है कि ऐसी एक घटना अनेक स्थानों पर संदेह को गहरा बनाती है। इस बीच टेक मुग़ल एलन मस्क के एक बयान ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों को लेकर नया विवाद पैदा कर दिया है। मस्क ने कहा कि ईवीएम मशीनों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या मानव द्वारा हैक किया जा सकता है। इसे आधार बना कर अनेक विपक्षी नेताओं ने भारतीय ईवीएम की विश्वसनीयता पर फिर सवाल उठाए हैं। राहुल गांधी ने इन मशीनों को “ब्लैक बॉक्स” करार दिया है। निर्वाचन आयोग ने विपक्षी नेताओं को जवाब देने के अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया दी है। मगर भारतीय जनमत के एक बहुत बड़े हिस्से में आयोग की साख पहले ही इतनी कमजोर हो चुकी है कि उसकी बातों को वहां अब ज्यादा तव्वजो नहीं दी जाती। तो कुल सूरत यह है कि नए विवादों ने देश की चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षपता पर पहले जारी विवाद को और गरमा दिया है। सार्वजनिक और खुले संवाद से ही इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है।