समाधान देश के अंदर ही पूरा सप्लाई चेन तैयार करना है। लेकिन यह धीरज के साथ दूरगामी निवेश और नियोजन से ही हो सकता है। इस दिशा में पहल का कोई संकेत नहीं दिखता। नतीजतन, व्यापार घाटा अपरिहार्य बना हुआ है।
चालू वित्त वर्ष में सिर्फ दो महीने ऐसे रहे, जब वस्तु व्यापार में उसके पिछले महीने की तुलना में व्यापार घाटा कम हुआ। लेकिन अप्रैल 2024 को आधार बनाएं, तो तब से नवंबर तक घाटा कुल मिला कर बढ़ा ही है। अप्रैल में व्यापार घाटा 19.1 बिलियन डॉलर रहा, जो नवंबर में 37.8 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। इसका सीधा कारण तो निर्यात की तुलना में आयात का तेजी से बढ़ना है, लेकिन इस बड़ी कहानी के अंदर कुछ बारीक अहम तथ्य भी हैं।
नवंबर में गुजरे वर्ष के इसी महीने की तुलना में आयात 27 फीसदी बढ़ा, वहीं निर्यात 4.7 प्रतिशत गिरा। सरकारी अधिकारी चूंकि हर नकारात्मक खबर के बचाव की दलील ढूंढ कर आते हैं, इसलिए उन्होंने नवंबर के आंकड़ों के बारे में कहा कि बीते महीने सोने का आयात तेजी से बढ़ा, जबकि प्रमुख रूप से पेट्रोलियम पदाथों का निर्यात घटने की वजह से कुल निर्यात आंकड़ों में गिरावट दिखी। यानी चिंता की कोई बात नहीं है। वैसे स्वर्ण आयात बढ़ने का रास्ता सरकार ने ही साफ किया है। इस पर आयात शुल्क में भारी कटौती और यूएई से मुक्त व्यापार समझौते का इसमें प्रमुख योगदान है। उधर रूस से सत्ता तेल खरीद कर अमेरिका और यूरोप निर्यात करने का रुझान ठंडा पड़ गया है। ऐसे पेट्रोलियम निर्यातक दूसरी जगह बाजार ढूंढ रहे हैं, लेकिन अभी इसमें ज्यादा कामयाबी नहीं मिली है।
वैसे व्यापार घाटे में बढ़ोतरी का कारण और भी है। भारत के निर्यात लगातार आयात निर्भर होते गए हैं। प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव जैसी योजनाओं के कारण प्रमुख इनपुट्स का आयात कर निर्मित वस्तुओं के निर्यात का चलन बढ़ा है। इस तरह भारत का जितना निर्यात बढ़ता है, उसी अनुपात में आयात बढ़ जाता है। इसका सबसे ज्यादा लाभ चीन को मिला है। यानी कुल मिला कर आयात-निर्यात के कारोबार में चीन पर निर्भरता बनी हुई है। इसका उपाय देश के अंदर ही पूरा सप्लाई चेन तैयार करना है। लेकिन यह धीरज के साथ दूरगामी निवेश और नियोजन से ही हो सकता है। इस दिशा में पहल का कोई संकेत नहीं दिखता। नतीजतन, व्यापार घाटा अपरिहार्य बना हुआ है।