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देर से हुआ अहसास

EconomyImage Source: ANI

Economy: बैलेंस सीट को सुधारना अच्छी बात है। लेकिन मुनाफे और श्रमिकों की आय के बीच संतुलन भी बने रहना चाहिए। यह नहीं रहा, तो अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग नहीं बचेगी और कॉपोरेट उत्पादों की खरीद नहीं होगी।’

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भारत की ‘ग्रोथ स्टोरी’ अटक गई

सरकार के कर्ता-धर्ताओं को अहसास होने लगा है कि भारत की ‘ग्रोथ स्टोरी’ कहीं अटक गई है। वजह आबादी के बहुत बड़े वर्ग की उपभोग क्षमता में गिरावट है।

नतीजतन मांग गिर गई है और उसका असर अब कॉरपोरेट सेक्टर पर भी पड़ रहा है। यह स्थिति बनी रही, तो जीडीपी की तीव्र वृद्धि दर के दावे को कायम रखना कठिन हो जाएगा।

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन की ताजा चिंता का यही संदर्भ है। पिछले हफ्ते एसोचैम के एक आयोजन में उन्होंने कॉरपोरेट मुनाफे और श्रमिकों की आमदनी के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया।(Economy)

कहा कि कॉरपोरेट का मुनाफा 15 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर है। लेकिन इससे हुई आमदनी के ज्यादातर हिस्से का इस्तेमाल कंपनियों ने ऋण चुकाने में किया है। लेकिन कॉरपोरेट मुनाफे की तुलना में कर्मचारियों की तनख्वाह नहीं बढ़ी है।

बैलेंस सीट को बेहतर करना(Economy)

नागेश्वरन ने कहा- ‘बैलेंस सीट को बेहतर करना अच्छी बात है। लेकिन कॉरपोरेट मुनाफे और श्रमिकों की आय वृद्धि के बीच संतुलन बने रहना चाहिए।

यह अनुपात कायम नहीं रहा, तो अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग नहीं बचेगी और कॉपोरेट उत्पादों की खरीद नहीं होगी।’ यह वो बात है, जिस पर अनेक विशेषज्ञ पहले से रोशनी डालते रहे हैं।

पिछले कुछ समय से कंपनी अधिकारी और मार्केट एजेंसियां भी इस बात को दो-टूक से कहने लगी हैं कि देश में मध्य वर्ग ढह रहा है।

इससे संबंधित ताजा रिपोर्ट मार्केट एजेंसी- कैंटार की आई है। शीर्षक गौरतलब हैः इंडिया ऐट क्रॉसरोड्स (चौराहे पर भारत)।

कैंटार साउथ एशिया के महानिदेशक सौम्य महंती ने कहा- ‘कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था में हुआ सुधार व्यावहारिक रूप में ‘के’ आकार का रहा है, जिसमें मध्य वर्ग पिस गया है।

2024 में बड़े दायरे में लोग ने महसूस किया कि वे पहले की तुलना में गरीब हो गए हैं। इसका परिणाम उपभोक्ता विश्वास के गतिरुद्ध होने के रूप में सामने आया है।’

कैंटार के मुताबिक अगले वर्ष भी मांग मद्धम ही रहेगी, क्योंकि ऊंची महंगाई वास्तविक आय को प्रभावित कर रही है। अच्छी बात है कि अब सरकारी अधिकारी भी इसे मान रहे हैं। लेकिन क्या उनके पास कोई समाधान भी है?

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By NI Editorial

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