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अचानक स्वदेशी जागरण!

सही है विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों ने छोटे कारोबारियों को व्यापार से बाहर करने के लिए चीजें सस्ती दरों पर बेचीं। उस कारण उन्हें घाटा हुआ। सवाल है सरकार की असल नीति क्या है?

वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने ई-कॉमर्स कंपनियों पर सीधा निशाना साधा। उन्हें देश के करोड़ों खुदरा कारोबारियों की बढ़ती मुसीबत का कारण बताया। उन्होंने कहाः ई-कॉमर्स की भारत में बेरोक वृद्धि से “बड़े पैमाने पर सामाजिक अस्त-व्यवस्ता” पैदा हो सकती है, जिसका असर दस करोड़ छोटे व्यापारियों पर पड़ेगा। गोयल एक संस्था की रिपोर्ट जारी होने के मौके पर बोल रहे थे। रिपोर्ट ‘भारत में रोजगार एवं उपभोक्ता कल्याण पर ई-कॉमर्स का संपूर्ण प्रभाव’ शीर्षक से जारी हुई है। गोयल ने अमेजन कंपनी का नाम लेकर उस पर निशाना साधा। उनकी टिप्पणी गौरतलब हैः ‘कीमत तय करने का लूटेरा चलन क्या देश के हित में है, जहां अमेजन जब कहती है कि वह अरबों डॉलर का निवेश करेगी, तो हम सब खुशी मनाते हैं। लेकिन हम अंदरूनी कहानी भूल जाते हैं कि ये अरबों डॉलर किसी बड़ी सेवा या भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सहायक किसी बड़े निवेश के रूप में नहीं आ रहे हैं। ये रकम कंपनी अपना घाटा पाटने के लिए ला रही है। लेकिन अरबों डॉलर का घाटा हुआ ही क्यों?’ गोयल का तात्पर्य है कि इन कंपनियों को घाटा छोटे कारोबारियों को व्यापार से बाहर करने के लिए चीजें सस्ती दरों पर बेचने के कारण हुआ। उसे पाटने के लिए अरबों डॉलर लाए गए।

यह नहीं कहा जा सकता कि गोयल की बातें बेबुनियाद हैं। मगर सवाल यह उठेगा कि नरेंद्र मोदी सरकार की नीति क्या है? क्या उसकी नीतियों ने हर तरह के विदेशी निवेश को प्रोत्साहित नहीं किया है? और क्या उसका ही यह परिणाम नहीं है कि देश में विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों का पूरा वर्चस्व बन गया है। वैसे क्या यह भी एक सच नहीं है कि केंद्र की ही नीतियों या कार्य-प्रणाली से तंग आकर अनेक कंपनियां बाहर चली गई हैँ। इस क्रम में ना तो देसी उद्योग का विकास हुआ है और ना विदेशी निवेश से अपेक्षित उद्देश्य पूरा हुआ है। क्या गोयल की बातें अब ई-कॉमर्स सेक्टर में अनिश्चय का माहौल नहीं बनाएंगी? वैसे खुदरा कारोबार सेक्टर की मुसीबतें बढ़ाने में नोटबंदी और जीएसटी जैसे नीतिगत फैसलों का क्या रोल रहा है, गोयल को यह भी बताना चाहिए।

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By NI Editorial

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