अमेरिका में जब कभी अतीत में राजनीतिक हत्याएं हुईं, उसको लेकर यह शक उठा और फिर बना रहा है कि इसके पीछे “डीप स्टेट” की एजेंसियों का हाथ है। ट्रंप भी इस “इलीट” और “डीप स्टेट” को अपने विरुद्ध लामबंद बताते रहे हैं।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की हत्या का प्रयास हुआ। उनके ऊपर स्नाइपर से गोलियां दागी गईं। एक गोली उनकी दांयी कान में लगी। यह सिर्फ बेहतर संयोग है, वरना वह गोली घातक भी हो सकती थी। इस घटना से अमेरिका हिल उठा है। ट्रंप की टीम ने तुरंत यह आरोप लगा दिया कि पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा मजबूत करने के उसके बार-बार किए गए अनुरोध की बाइडेन प्रशासन ने अनदेखी कर दी है। इसके अलावा पेनसिल्वेनिया राज्य के बटलर की- जहां यह घटना हुई- चुनाव सभा में मौजूद एक ट्रंप समर्थक ने यह सनसनीखेज दावा किया कि उसने राइफलधारी व्यक्ति के बारे में पुलिस को आगाह किया था, लेकिन अधिकारियों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। यानी कुल कोशिश यही बताने की हुई है कि ट्रंप की जान लेने की इस कोशिश के लिए परोक्ष रूप से राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन जिम्मेदार है।
अमेरिका में तीखे राजनीतिक ध्रुवीकरण के कारण माहौल जिस हद तक ज़हरीला बना हुआ है, उसके बीच ऐसे आरोपों का दूरगामी प्रभाव हो सकता है। वहां जब कभी अतीत में राजनीतिक हत्याएं हुई हैं, उसको लेकर यह शक उठा और फिर बना रहा है कि इसके पीछे “डीप स्टेट” की एजेंसियों का हाथ है। ट्रंप भी इस “इलीट” और “डीप स्टेट” को अपने विरुद्ध लामबंद बताते रहे हैं। ऐसे दावों और आरोपों में हकीकत हो या नहीं यह दीगर बात है। लेकिन ऐसी धारणाएं लोगों की राय और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। ट्रंप समर्थकों के बारे में पहले से ही यह धारणा है कि उनमें एक किस्म का उन्माद होता है। यह रुझान उनमें किस हद तक है, इसका नजारा दुनिया ने छह जनवरी 2021 को देखा था, जब ट्रंप समर्थकों कैपिटॉल हिल यानी अमेरिका के संसद भवन पर धावा बोल दिया था। ताजा घटना से यह प्रवृत्ति और बढ़ेगी। ट्रंप के राष्ट्रपति होने के समय ऐसी खबरें आम थीं कि देश में बड़ी संख्या में “एंटीफा” (एंटी-फासिस्ट) हथियारबंद ग्रुप बने हैं, जो ट्रंप समर्थकों के साथ गृह युद्ध की तैयारी कर रहे हैँ। अब ताजा घटना से गुटीय हिंसा भड़कने का खतरा और बढ़ गया है।