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सूरत की उड़ी चमक

मुद्दा यह है कि भारत में सामाजिक सुरक्षा का कोई ऐसा तंत्र मौजूद क्यों नहीं है, जिससे विकट स्थितियों के समय लोगों को ऐसा न्यूनतम सहारा मिल सके और वे आत्म-हत्या जैसे हताशा के चरम कदम उठाने को मजबूर ना हों?

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक गुजरात के मशहूर शहर- सूरत में पिछले 16 महीनों में हीरा पॉलिश करने वाले कम-से-कम 63 लोगों ने आत्महत्या कर ली है। अधिकारियों के मुताबिक इसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध से बनी परिस्थितियां हैं। मार्च 2022 के बाद से भारत के हीरा राजस्व में लगभग एक तिहाई की गिरावट दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत से कटे और पॉलिश किए हीरे का निर्यात 27.6 प्रतिशत गिर गया। इसका असर पूरे कारोबार पर पड़ा है, लेकिन सबसे बुरी तरह प्रभावित आम कारीगर हुए हैं। गुजरात सरकार या हीरा श्रमिक संघ के पास इस बारे में ठोस जानकारी नहीं है कि इस मंदी के कारण कितने लोगों ने नौकरी गंवायी है। मगर आम अंदाजा है कि सिर्फ पिछले छह महीनों में पॉलिश के काम में लगे तकरीबन 50 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैँ। कई कंपनियों में हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम हो रहा है। कई अन्य कंपनियों ने काम के घंटों में कटौती की है। नतीजतन, जो व्यक्ति पहले 40 हजार रुपये प्रति माह कमा लेता था, अब उसकी कमाई घटकर आधी रह गई है।

जेम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक भारत में हीरा तराशी के लिए 30 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा माल रूस के अलरोसा खदान से आती है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूरोपीय संघ और जी-7 देशों ने रूसी हीरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे भारत के हीरा उद्योग के सामने गहरा संकट खड़ा हो गया। सूरत में छह लाख से ज्यादा लोग हीरा उद्योग में काम करते हैं। आज उन सब पर आशंकाओं के बादल मंडरा रहे हैं। ये परिस्थिति कुछ गंभीर सवाल उठाती है। निजी कारोबार में उतार-चढ़ाव आम परिघटना है। विभिन्न चुनौतियों के कारण ऐसे हालात बनते हैं, जिनकी वजह से या तो श्रमिकों की नौकरी चली जाती है या उनकी आमदनी घट जाती है। मुद्दा यह है कि भारत में सामाजिक सुरक्षा का कोई ऐसा तंत्र मौजूद क्यों नहीं है, जिससे ऐसी विकट स्थितियों के समय लोगों को ऐसा न्यूनतम सहारा मिल सके, ताकि वे आत्म-हत्या जैसे हताशा के चरम कदम उठाने को मजबूर ना हों?

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By NI Editorial

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