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डिजीयात्रा और निजता

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डिजीयात्रा ऐप का इस्तेमाल बढ़ रहा है और साथ ही फेशियल रिकग्निशन और अन्य डाटा के दुरुपयोग की चिंता भी बढ़ती जा रही है।

देश के करीब दो दर्जन हवाईअड्डों पर डिजीयात्रा ऐप का इस्तेमाल शुरू हो गया है। इसकी मदद से यात्री बिना कोई दस्तावेज दिखाए आसानी से हवाईअड्डों पर चेक इन करते हैं। अब तक 55 लाख लोगों ने यह ऐप डाउनलोड किया और तीन करोड़ लोगों ने यात्रा के लिए इसका इस्तेमाल किया है। इसके इस्तेमाल को लेकर पहले भी यात्रियों की निजता से जुड़ी चिंता जताई गई थी लेकिन अब पता चला है कि सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने खुद ही इस पर सवाल उठाए हैं। सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी गई जानकारी के आधार पर एक खबर आई है, जिसमें कहा गया है कि सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि निजी कंपनियों द्वारा फेशियल रिकग्निशन तकनीक का दुरुपयोग हो सकता है और इससे लोगों को सुरक्षा देने के लिए अतिरिक्त उपाय करने की जरुरत है। हालांकि नागरिक विमानन मंत्रालय का कहना है कि डिजीयात्रा ऐप को यात्रियों के चेक इन के लिए डी फैक्टो गेटवे बना दिया जाए। यानी एक मंत्रालय इसके इस्तेमाल से सुरक्षा को खतरा बता रहा है तो दूसरा मंत्रालय इसे हर हवाईअड्डे पर हर यात्री के लिए अनिवार्य करने की बात कर रहा है।

सवाल है कि जब इस ऐप को वैकल्पिक बनाया गया है और इसे लॉन्च करते समय कहा गया कि यह यात्रियों की मर्जी पर है कि वे इसे चुनते हैं या नहीं तो फिर ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को इसके इस्तेमाल के लिए क्यों बाध्य किया जा रहा है? इसे अनिवार्य बनाने से पहले सरकार को इस बारे में पूरी जानकारी नागरिकों को देनी चाहिए। यह बताना चाहिए कि डिजीयात्रा ऐप एक निजी कंपनी डिजीयात्रा फाउंडेशन का है, जिसमें छह हिस्सेदार हैं। पांच हिस्सेदार दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरू और कोच्चि हवाईअड्डे हैं, जो निजी हाथों में हैं। इन पाचों के पास 73 फीसदी हिस्सेदारी है, जो बराबर बराबर बंटी है। भारत सरकार के एयरपोर्ट ऑथोरिटी के पास 27  फीसदी हिस्सेदारी है। इस तरह से यह लगभग पूरी तरह से निजी उद्यम है, जिसके हाथ में लाखों, करोड़ों नागरिकों का बायोमैट्रिक डाटा जा रहा है।

इसका इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर यात्रियों को पता नहीं होता है कि उनका फेशियल रिकग्निशन हो रहा है। दूसरे, इसमें कहा गया है कि यात्रियों का डाटा स्टोर नहीं किया जाता है। लेकिन साथ ही प्राइवेसी की शर्तों में यह भी कहा गया है कि जरुरत पड़ने पर यात्रियों का डाटा सरकारी एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है। सोचें, अगर डाटा स्टोर नहीं किया जाता है तो फिर साझा करने की बात कैसे कही जा रही है? ध्यान रहे दुनिया के किसी भी देश में हवाईअड्डे जैसी संवेदनशील जगह पर यात्रियों का बायोमैट्रिक डाटा इकट्ठा करने का अधिकार किसी निजी कंपनी को नहीं दिया गया है। तभी सरकार को जल्दी से जल्दी इससे जुड़ी सुरक्षा चिंताओं को दूर करना चाहिए और तब तक इसके इस्तेमाल को अनिवार्य करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए।

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