मुमकिन है, इसके पीछे प्रमुख कारण अडानी के खिलाफ राहुल गांधी के लगातार हमले और उनकी कुछ दूसरी नीतियां रही हों। फिर भी वह वक्त अब निर्णायक मोड़ पर है, जब कांग्रेस को बन रहीं विपरीत परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श करना चाहिए।
इंडिया गठबंधन के अंदर कांग्रेस से अलगाव का रुझान और आगे बढ़ा है। अब नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि कांग्रेस गठबंधन का नेता बने रहना चाहती है, तो उसे यह स्थान मेहनत से कमाना पड़ेगा। अब्दुल्ला ने ईवीएम में हेरफेर को लेकर ‘रोने की प्रवृत्ति’ से कांग्रेस को बाहर आने की सलाह भी दी और कहा कि उसे चुनाव नतीजों को स्वीकार करना सीखना चाहिए। इसके पहले गठबंधन के नेता के रूप में कांग्रेस या राहुल गांधी की हैसियत को ममता बनर्जी, शरद पवार और लालू प्रसाद यादव से प्रत्यक्ष एवं शिवसेना (उद्धव) और डीएमके से परोक्ष चुनौती मिल चुकी है। Congress political crisis
मुमकिन है कि इस प्रवृत्ति के पीछे प्रमुख कारण अडानी ग्रुप के खिलाफ राहुल गांधी के लगातार हमले और उनकी कुछ दूसरी नीतियां रही हों। इसके बावजूद वह वक्त अब निर्णायक मोड़ पर है, जब पार्टी को बन रहीं विपरीत परिस्थितियों पर गहन विचार-विमर्श करना चाहिए। यह तथ्य है कि कांग्रेस गठबंधन के अघोषित नेता के रूप में अपनी जिम्मेदारी को नहीं निभा पाई। लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक अच्छे नतीजों के बाद तो वह “जननायक” परिघटना का ऐसे शिकार हुई कि उसे लगा अब राहुल गांधी की लहर चल रही है।
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इसका असर हरियाणा और महाराष्ट्र में सीट बंटवारे के दौरान उसके हठी रुख में नजर आया। संसद में किस मुद्दे को कितनी तरजीह देनी है, इस पर गठबंधन में आम सहमति बनाने की कोशिश के बजाय खुद मुद्दे तय कर लेने का उसका रुख भी इसी परिघटना से प्रभावित लगा है। Congress political crisis
राहुल गांधी ने बिना आज की सियासी हकीकतों को समझे जातीय पहचान की राजनीति को जिस तरह अपने एजेंडे में प्रमुखता दी है, उसका उलटा असर चुनावों के साथ-साथ संभवतः अन्य दलों के साथ कांग्रेस के रिश्तों पर भी हुआ है। फिर चुनावी राजनीति में रहते हुए खुद को इसके ऊपर दिखाने की कोशिश कभी कारगर नहीं होती। इसलिए यह अनिवार्य हो गया है कि कांग्रेस वर्तमान सामाजिक एवं राजनीतिक समीकरणों के प्रति बेहतर समझ बनाए और उसके अनुरूप अपना रुख तय करे। वरना, नरेंद्र मोदी विरोधी विपक्षी एकता की जो संभावना बनी थी, वह बिखर जाएगी।