हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बनाना चीन की प्राथमिकता बनी हुई है। श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे देश इसी लिहाज से उसकी रणनीति में महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। म्यांमार से संबंध को भी इसी कारण चीन ने खास तरजीह दे रखी है।
चीन के जिस जहाज को भारत और अमेरिका के दबाव के कारण श्रीलंका ने अपने तट पर आने की इजाजत नहीं दी थी, वह अब मालदीव पहुंचने वाला है। चीन का कहना है कि शियांग हांग होंग-03 नाम का ये जहाज हिंद महासागर में असैनिक शोध करने के मकसद से वहां जा रहा है। जबकि भारत इस अमेरिकी राय से सहमत रहा है कि चूंकि चीन में असैनिक और सैनिक दायरे में अंतर नहीं है, इसलिए हर असैनिक शोध से प्राप्त आंकड़ों का वहां सैनिक मकसद से इस्तेमाल किया जा सकता है। श्रीलंका ने पिछले अक्टूबर में भारत के विरोध के बावजूद एक चीनी शोध जहाज को अपने यहां आने की इजाजत दे दी थी। लेकिन उसके बाद अडानी ग्रुप के कोलंबो स्थित कंटेनर टर्मिनल प्रोजेक्ट में अमेरिका की सरकारी एजेंसी इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन ने 55.3 करोड़ डॉलर के निवेश का फैसला किया। इससे वहां अमेरिका का भी सीधा हित जुड़ गया। इससे ताजा मामले में श्रीलंका सरकार भारत और अमेरिका के साझा विरोध की अनदेखी नहीं कर पाई। मगर इसी बीच मालदीव भारत के प्रभाव क्षेत्र निकलकर चीन के करीब पहुंच गया है। खबरों के मुताबिक मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइजू ने अपनी हाल की चीन यात्रा में चीनी जहाज को मालदीव तट पर ठहरने की इजाजत दे दी। इस समय दुनिया में बढ़ते टकराव के बीच हिंद महासागर सबसे महत्त्वपूर्ण स्थलों में एक है। चीन का अरबों बिलियन डॉलर का कारोबार इस क्षेत्र से गुजरता है, जबकि यहां उसकी सैन्य उपस्थिति कमजोर है। ऐसे में हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बनाना चीन की प्राथमिकता बनी रही है। श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे देश इसी लिहाज से उसकी रणनीति में महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। म्यांमार से संबंध को भी इसी कारण चीन ने खास तरजीह दे रखी है। दूसरी तरफ भारत की राय में हिंद महासागर को उसका प्रभाव क्षेत्र है। इसीलिए इस क्षेत्र में चीन की पैठ रोकना भारतीय रणनीति का हिस्सा है। मगर छोटे देशों को निवेश और इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण की पेशकश से लुभाने की चीन के पास मजबूत क्षमता है, इसलिए भारत के लिए यह काम चुनौती भरा बना हुआ है।