tax on petrol diesel: सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की नीति पर सचमुच अमल किया होता, तो साढ़े 36 लाख करोड़ रुपये लोगों की जेब में बचते। इतना पैसा उपभोग क्षेत्र में जाता। बेशक उससे बाजार को जो बल मिल सकता था।
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2024-25 के बजट में सरकार की आमदनी
संसद में बताया गया है कि 2019-20 से 2023-24 तक केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पर कर/ उपकर/ शुल्क से 36,58,354 करोड़ रुपये वसूले। ध्यान दीजिएः 2024-25 के आम बजट में सरकार की कुल आमदनी का अनुमान 30,80,274 करोड़ रुपए लगाया गया है।
2019-20 में यह रकम 20,82,589 करोड़ रुपये थी। तो पांच साल में पेट्रोलियम पर टैक्स से सरकार ने उतनी रकम बटोर ली, जो इनमें से किसी एक वर्ष में उसे हुई आमदनी से ज्यादा है।
इस दौर में बुनियादी मानव विकास से संबंधित योजनाओं के बजट में कटौती का सिलसिला भी चला है। तो वाजिब सवाल कि है सारी अतिरिक्त आय गई कहां?
अब इसी हफ्ते कुछ संकेत संसद में दिए गए एक अन्य आंकड़े पर गौर करेः 2023-24 सरकारी बैंकों ने एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए के ऋण माफ कर दिए। पांच साल में ये रकम लगभग नौ लाख करोड़ रुपये बैठती है।
2019 में कॉरपोरेट टैक्स में छूट
इसके अलावा सरकार कह सकती है कि वह इन्फ्रास्ट्रक्चर में पूंजीगत निवेश पर हर साल दस लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर रही है। देश में मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना पर भी बड़ी रकम खर्च हुई है।
इसके अलावा 2019 में कॉरपोरेट टैक्स में दी गई छूट के कारण सरकार पर लाखों करोड़ रुपये का बोझ पड़ा।
बहरहाल, यह प्रश्न अनुत्तरित है कि की सरकार की इन प्राथमिकताओं से आम जन को क्या हासिल हुआ? जिस समय मध्य वर्ग का ह्रास एक आम कथानक बन चुका हो और उद्योग जगत बाजार सिकुड़ने की शिकायत कर रहा हो, तो यह अवश्य पूछा जाएगा कि आम लोगों की जेब से कॉरपोरेट सेक्टर धन ट्रांसफर करने की नीति पर पुनर्विचार करने के लिए सरकार तैयार क्यों नहीं है?
कल्पना कीजिए कि सरकार ने पेट्रोलियम की कीमतों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की नीति पर सचमुच अमल किया होता। तब साढ़े 36 लाख करोड़ रुपये लोगों की जेब में बचते।
इतना पैसा उपभोग क्षेत्र में जाता। उससे बाजार को जो बल मिलता, वह बेशक आर्थिक आंकड़ों में झलकता। तो क्या आज की आर्थिक बदहाली की सीधी जिम्मेदारी सरकार पर नहीं जाती है?