प्रो-टेम स्पीकर को लेकर अनावश्यक टकराव खड़ा किया गया। इस प्रकरण से उचित ही यह संदेश ग्रहण किया गया है कि वर्तमान लोकसभा के अंदर की कहानी भी उससे कुछ अलग नहीं होगी, जैसी पिछली दो लोकसभाओं के समय देखने को मिली थी।
अठारहवीं लोकसभा का कार्यकाल अनावश्यक टकराव से शुरू हुआ है। संसदीय परंपरा है कि लोकसभा की चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसके नव-निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए एक अस्थायी अध्यक्ष (प्रो-टेम स्पीकर) की नियुक्ति होती है। परंपरा के मुताबिक नई सदन के लिए चुने गए सबसे वरिष्ठ सदस्य को यह जिम्मेदारी दी जाती है। प्रो-टेम स्पीकर का कार्यकाल बमुश्कल दो दिन का होता है और इस दौरान शपथ दिलाने के अलावा उनके पास कोई और कार्य नहीं होता है। इसलिए इस पद पर नियुक्ति को लेकर कोई विवाद हो, यह कल्पना से भी परे है। लेकिन शायद सत्ताधारी भाजपा का मौजूदा नेतृत्व अपने दायरे से बाहर किसी व्यक्ति, दल या जमात को देश का हिस्सा नहीं मानता, इसलिए उसने अपनी पार्टी के सबसे वरिष्ठ निर्वाचित सदस्य भतृहरि महताब को प्रो-टेम स्पीकर को बनाया। ऐसा करते हुए उसने वरिष्ठतम सदस्य के. सुरेश (कांग्रेस) की उपेक्षा कर दी। इस तरह अनपेक्षित टकराव की जड़ें पड़ गईं। और इस प्रकरण से उचित ही यह संदेश ग्रहण किया गया है कि वर्तमान लोकसभा के अंदर की कहानी भी उससे कुछ अलग नहीं होगी, जैसी पिछली दो लोकसभाओं के समय देखने को मिली थी।
टकराव, हंगामा, बार-बार स्थगन, विपक्षी सदस्यों का निलंबन, मौका ढूंढ कर उनकी सदस्यता रद्द करना, बिना बहस विधेयकों का पारित कराना- ये सब वे अवांछित प्रक्रियाएं हैं, जो गुजरे दस साल में संसद का सामान्य नज़ारा बन गई हैं। अगर वैसा ही फिर होता है, तो उससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण कुछ और नहीं हो सकता। सत्ताधारी दल का टकराव से नया संसदीय कार्यकाल शुरू करने का नजरिया यह भी जाहिर करता है कि वह हाल के चुनावी जनादेश से उचित संदेश ग्रहण करने के प्रति बिल्कुल ही अनिच्छुक बनी हुई है। चुनाव में लगे झटके के कारणों की तह में जाने के बजाय उसने निरंतरता का संदेश देने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई है। यह खुद भाजपा के लिए भी अच्छी खबर नहीं है। जबकि लोकतंत्र का ऐसा अनादर भारत के लिए तो बेहद अशुभ संकेत माना जाएगा। इसलिए बेहतर होगा कि भाजपा अपने इस रवैये को तुरंत बदले। यही सबके हित में होगा।