यह अहसास तब हुआ, जब 2024 कॉरपोरेट्स की प्रिय पार्टी को तगड़ा झटका लगा और वह बहुमत से खासा दूर रह गई। तो अब उन्होंने सलाह दी है कि नई सरकार को रोजगार पैदा करने और महंगाई नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए।
सर्वोच्च कॉरपोरेट अधिकारियों की आंख जाकर खुली है। उन्हें अंदाजा हुआ है कि भारत में बेरोजगारी एक दुर्दशा का रूप ले चुकी है। दूसरे अर्थों में यह कहा जा सकता है कि अपने बढ़ते मुनाफे से मस्त कॉरपोरेट सेक्टर को अब महसूस हुआ है कि जीडीपी की जिस ऊंची वृद्धि दर को लेकर उनकी खुशफहमी आसमान में थी, वह विकास असल में रोजगार-विहीन रहा है। यह अहसास उन्हें तब हुआ, जब 2024 के आम चुनाव में उनकी प्रिय पार्टी को तगड़ा झटका लगा और वह बहुमत के आंकड़े से खासा दूर रह गई। तो अब एक वित्तीय अखबार के सर्वे में उन्होंने सलाह दी है कि नई सरकार को अपना ध्यान रोजगार पैदा करने और महंगाई पर काबू पाने पर केंद्रित करना चाहिए। साथ ही उसे इलाज की व्यवस्था और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास पर खास ध्यान देना चाहिए। उनमें से कुछ को अर्थशास्त्र का यह बुनियादी सिद्धांत भी याद आया है कि बेरोजगारी पर नियंत्रण और निवेश आकर्षित करने के उपायों से आर्थिक वृद्धि एवं सामाजिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
सर्वे के दौरान उभरी इस आम राय को इस बात का भी संकेत माना जा सकता है कि कॉरपोरेट सेक्टर का भारतीय जनता पार्टी की इस क्षमता पर अब पहले जैसा भरोसा नहीं रहा कि जमीनी समस्याएं चाहे जो हों, ये पार्टी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से बहुमत हासिल कर राजनीतिक स्थिरता प्रदान करने में कामयाब बनी रहेगी। जाहिर है, अचानक पैदा हुई अस्थिरता की संभावना ने उन्हें चिंतित किया है। वैसे अगर वे अपने आंख-कान खुले रखते और देशी-विदेशी मीडिया की रिपोर्टों पर ही ध्यान दे देते, तो आज उन्हें ऐसा झटका नहीं लगता। उच्च आर्थिक विकास के दौर में भारत में व्यापक रूप से आर्थिक बदहाली फैल रही है, इसका पर्याप्त विवरण वहां हमेशा से मौजूद था। इसीलिए चुनाव नतीजों पर अमेरिकी अखबारों को कॉरपोरेट नियंत्रित भारतीय मीडिया से कम हैरत हुई है। एक अमेरिकी अखबार ने हेडिंग दी है- रोज 100 रु. से कम कमाने वाले भारतीयों ने अरबपतियों के दोस्त मोदी को जमीन पर ला दिया। अब कॉरपोरेट्स को ऐसी दोस्ती गांठ कर अपना स्वार्थ साधते रहने के मोह जाल से निकल जाना चाहिए।