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भूटानः तॉबगे की वापसी

अब भूटान में नई सरकार बनेगी, लेकिन उससे उसकी विदेश नीति पर ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। वहां निर्वाचित सरकारों की सीमित भूमिका ही होती है। हाल के वर्षों में भूटान ने अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्त रुख अपनाने की कोशिश की है।

भूटान में नई संसद के चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री शेरिंग तॉबगे की पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को बड़ी जीत मिली है। उसे सदन के 47 में से 30 सीटें मिलीं। मैदान में दूसरा राजनीतिक दल भूटान टेंड्रेल पार्टी (बीटीपी) थी। उसे 17 सीटें मिली हैं। भूटान में संसदीय चुनाव दो चरणों में होता है। पहले चरण का मतदान नवंबर में हुआ था, जिसमें वर्तमान सत्ताधारी पार्टी हार गई थी। तब वोट प्रतिशत के लिहाज से सबसे ऊपर पीडीपी और बीटीपी रही थीं। दूसरे दौर का नतीजा घोषित होने के बाद अब भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक नई सरकार बनाने का न्योता तॉबगे को देंगे। भूटान संवैधानिक राजतंत्र है। 2008 में वहां संसद का गठन हुआ था। इस बार के उसके चुनाव पर खास नजर दक्षिण एशिया में उभर रही नई भू-राजनीतिक स्थितियों के कारण थी। भूटान, भारत और चीन के बीच सीमा  से जुड़े विवाद ने हाल में नाटकीय मोड़ लिया है। छह साल पहले डोकलाम में भारत और चीन के बीच सैनिक टकराव की स्थिति बनी थी, जहां इन तीनों देशों की सीमा मिलती है। उसके बाद भूटान की नीति में बदलाव देखा गया है।

पिछली सरकार ने चीन के साथ सीमा वार्ता को आगे बढ़ाया। गुजरे वर्ष खबर आई थी कि दोनों देश समझौते के करीब हैं। इस खबर से भारत में असहजता पैदा हुई थी। अब भूटान में नई सरकार बनेगी, लेकिन उससे उसकी विदेश नीति पर ज्यादा फर्क पड़ने की संभावना नहीं है। वहां निर्वाचित सरकारों की सीमित भूमिका ही होती है। हाल के वर्षों में भूटान ने अपेक्षाकृत ज्यादा स्वायत्त रुख अपनाने की कोशिश की है। वह भारत की छाया से निकलने की कोशिश करता दिखा है। पिछले साल भूटान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि डोकलाम विवाद सुलझाने में उनका देश, भारत और चीन बराबर के साझेदार हैं। इस तरह उन्होंने इसमें चीन को भारत के समकक्ष बता दिया था। सिलिगुड़ी गलियारे की सुरक्षा और उत्तर पूर्वी हिस्से के साथ संपर्क के लिहाज से भारत के लिए डोकलाम काफी संवेदनशील स्थान है। इसलिए भारत चाहेगा कि भूटान की नई सरकार भारत के सामरिक हितों का ध्यान रखे।

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By NI Editorial

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