गंभीर और मुश्किल सवालों से उलझने का साहस ना हो, तो फिर हर वीभत्स घटना पर राजनीतिक दिखावा ही एकमात्र रास्ता बच जाता है। आरजी कर अस्पताल बलात्कार कांड के बाद यही रास्ता ममता बनर्जी की सरकार ने अपनाया है।
ममता बनर्जी ने इसे “ऐतिहासिक और मॉडल” विधेयक कहा है। पश्चिम बंगाल की विधानसभा ने बलात्कार और हत्या के दोषियों को मृत्युदंड का प्रावधान करते हुए इस विधेयक को पारित किया है। इसमें यह भी प्रावधान है कि पुलिस को ऐसे मामलों की जांच पूरी कर 21 दिन के अंदर अपनी पहली रिपोर्ट अदालत में पेश करनी होगी, जिससे मुजरिमों को शीघ्र एवं कठोरतम सजा दिलाना संभव हो जाएगा। इस तरह आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या के मामले में सियासी तौर पर बुरी तरह घिर गई राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने अपने बचाव का एक राजनीतिक कदम उठाया है। दांव कारगर होगा या नहीं, यह तो बाद में जाहिर होगा। लेकिन जो कदम उठाया गया है, वह सिरे से समस्याग्रस्त है। इससे जाहिर हुआ है कि देश में इतना विवेकहीन माहौल बना हुआ है कि इसके बीच गंभीर मसलों पर भी अतीत से सीख लेने और तार्किक विचार-विमर्श में जाने की गुंजाइश बेहद सिकुड़ चुकी है। निर्भया कांड के बाद देश में ऐसे अपराधों के लिए सजा को सख्त बनाया गया था। उसके बाद बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए और भी सख्त पोक्सो जैसा कानून बना।
उन अधिनियमों का तजुर्बा क्या है? क्या उनसे जुर्म पर काबू पाने में तनिक भी मदद मिली? ऐसा ना होना दो प्रमुख वजहों से हुआ है। एक तो अपने देश में कानून के मुताबिक सजा सुनिश्चित करने वाली आपराधिक न्याय व्यवस्था बेहद लचर है, इसलिए अच्छे इरादों के बावजूद ठोस परिणाम हासिल नहीं होते। दूसरे, जिन समस्याओं की जड़ें समाज के आर्थिक और सांस्कृतिक ढांचे में हों, उनका समाधान महज कानून बना कर नहीं किया जा सकता। लेकिन इन गंभीर और मुश्किल सवालों से उलझने का साहस ना हो, तो फिर हर वीभत्स घटना पर राजनीतिक दिखावा ही एकमात्र रास्ता बच जाता है। यही रास्ता ममता बनर्जी की सरकार ने अपनाया है। चूंकि विपक्ष- खासकर भारतीय जनता पार्टी के लिए भी कोलकाता की घटना सिर्फ राजनीतिक लाभ हासिल करने का जरिया है, अतः उसके पास भी कोई सार्थक सुझाव नहीं है। इसीलिए पार्टी ने विधेयक का समर्थन किया है।