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बांग्लादेश से सबक लें

हाल में बांग्लादेश के आर्थिक विकास की वैश्विक स्तर पर खूब तारीफ हुई है। यह बहुचर्चित हुआ कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश भारत से आगे निकल गया है। मगर इस कथित उपलब्धि की हकीकत का नज़ारा अब बांग्लादेश की सड़कों पर हुआ है।

बांग्लादेश का नेतृत्व दो साल पहले श्रीलंका में हुई राजनीतिक उथल-पुथल से सबक लेता, तो संभवतः फिलहाल वहां आज जैसी हिंसक परिस्थितियां पैदा नहीं होतीं। सबक यह है कि फैलती आर्थिक हताशा देर-सबेर सामाजिक एवं राजनीतिक अस्थिरता का कारण बनती है। बांग्लादेश में आग 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के परिजनों के लिए 30 फीसदी आरक्षण से सुलगी। हाई कोर्ट के एक हालिया स्टे ऑर्डर से यह आरक्षण बहाल हो गया है, जिसे 2018 में रद्द किया गया था। इससे सरकारी नौकरियों में कुल 56 फीसदी स्थान आरक्षित हो गए हैँ। इसके खिलाफ ही विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिन्होंने 15 जुलाई को हिंसक रूप ले लिया। बांग्लादेश बेरोजगारी की विकट समस्या झेल रहा है। 17 करोड़ की आबादी में लगभग दो तिहाई लोग कामकाज की उम्र वाले हैं। हर साल एक करोड़ लाख 90 लाख नए लोग रोजगार बाजार पहुंच जाते हैँ। प्राइवेट नौकरियां अस्थायी किस्म की हैं, जिनमें सामाजिक सुरक्षाओं का अभाव है। इसलिए सरकारी नौकरी लोगों की पहली पसंद बनी हुई है। ऐसे में छात्रों और नौजवानों के ताजा गुस्से को समझा जा सकता है।

इस लिहाज से देखें, तो समस्या की जड़ ऐसी अर्थव्यवस्था का प्रसार है, जिसमें श्रमिक वर्ग के लिए सम्मानजनक परिस्थितियां निर्मित नहीं होतीं। दूसरी तरफ गैर-बराबरी बढ़ती है। जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के पैमाने पर ऐसी अर्थव्यवस्था का महिमामंडन किया जाता है, लेकिन इसमें होने वाले विकास का आम आवाम से कोई साबका नहीं होता। हाल के वर्षों में बांग्लादेश के भी ऐसे विकास की वैश्विक मीडिया और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों में खूब तारीफ हुई है। यह तथ्य बहुचर्चित हुआ कि प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश भारत से आगे निकल गया है। मगर इस उपलब्धि की आम हकीकत का नज़ारा अब बांग्लादेश की सड़कों पर हो रहा है। बेशक, लोकतांत्रिक अपेक्षाओं का उल्लंघन करते हुए प्रधानमंत्री बेगम शेख हसीना ने बिना विपक्ष की भागीदारी के जो चुनाव कराए, उससे बना असंतोष भी ताजा विरोध प्रदर्शनों के साथ घुल-मिल गया है। लेकिन असल सवाल बांग्लादेशी नौजवानों में बढ़ती हताशा का है। इस घटनाक्रम से भारत जैसे देशों को ठोस सबक लेने चाहिए।

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By NI Editorial

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