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शासकीय औचित्य का प्रश्न

आधुनिक दौर में सरकारें शासकीय औचित्य दो आधार पर हासिल करती हैः एक, आम जन के जीवन में स्तर में उत्तरोत्तर सुधार के रिकॉर्ड से और दूसरा बहुमत के समर्थन के इजहार से। हसीना सरकार दोनों मोर्चों पर पिछड़ गई है।

बांग्लादेश में फिर भड़की हिंसा का संदेश है कि देश की आबादी के एक बड़े तबके ने प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद और उनकी सरकार के शासकीय औचित्य को ठुकरा दिया है। पिछले महीने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के जिस मुद्दे पर छात्र आंदोलन भड़का था, वह मुद्दा कमोबेश छात्रों के हक में हल हो चुका है। उसके बाद बावजूद छात्रों ने आंदोलन का नया दौर शुरू कर दिया है, जिसमें उनकी एकमात्र मांग हैः प्रधानमंत्री का इस्तीफा। ऐसी मांगों के बातचीत से समाधान की कोई गुंजाइश नहीं होती, तो रविवार को सत्ताधारी आवामी पार्टी की छात्र इकाई और सत्ता पक्ष के अन्य समर्थकों ने सड़क पर उतर कर आंदोलनकारियों की चुनौती दी। दोनों तरफ से हुई हिंसा में 14 पुलिसकर्मी सहित लगभग 100 लोग मारे गए। यह साफ है कि यह आंदोलन अब सिर्फ कुछ निर्दलीय छात्र संगठनों का नहीं रह गया है। बल्कि इसमें विपक्ष एवं सरकार विरोधी तमाम गुट सक्रिय हो गए हैं। हाल में हसीना सरकार ने इस्लामी पार्टी जमायत-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को रोक दिया गया।

लेकिन उसका कोई असर होता नहीं दिखा है। इसके विपरीत शेख हसीना के इस्तीफे की मांग के पक्ष में बड़ी जन गोलबंदी होती दिख रही है। अनुमान लगाया जा सकता है कि यह दो मोर्चों पर सत्ता पक्ष के शासकीय औचित्य पर उठे सवाल का नतीजा है। पहला मुद्दा तो विकराल बेरोजगारी सहित अन्य आर्थिक मोर्चों पर सरकार की नाकामी और आम जन के जीवन स्तर में आई गिरावट का है। दूसरा सवाल इस वर्ष जनवरी में जिस तरह आम चुनाव कराए गए, उससे उठा है। शेख हसीना के तटस्थ सरकार के तहत निर्वाचन से इनकार करने के कारण विपक्ष ने आम चुनाव का बहिष्कार किया था। परिणामस्वरूप अवामी लीग बिना मुकाबले के जीत तो गई, लेकिन बड़ी संख्या में लोगों की निगाह में उसकी जीत संदिग्ध बनी हुई है। आधुनिक दौर में सरकारें शासकीय औचित्य दो आधार पर हासिल करती हैः एक, आम जन के जीवन में स्तर में उत्तरोत्तर सुधार के रिकॉर्ड से और दूसरा बहुमत के समर्थन के इजहार से। हसीना सरकार दोनों मोर्चों पर पिछड़ गई है।

By NI Editorial

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