क्या पैसे के वास्तव में लेन-देन का कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य उप-राज्यपाल को सौंपा गया है? अगर केजरीवाल पर आतंकवादी गुट से पैसा लेने के प्रथम दृष्टया सबूत हों, तो बेशक गहन जांच होनी चाहिए। मगर उप-राज्यपाल के निर्णय का समय महत्त्वपूर्ण है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किसी खालिस्तानी आतंकवादी गुट से पैसा लेने का ठोस आरोप है, तो बेशक उसकी जांच होनी चाहिए। मगर प्रश्न यही है कि क्या आरोप ठोस है? इसलिए जरूरी है कि दिल्ली के उप-राज्यपाल ने उनके खिलाफ जिस इल्जाम पर एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) जांच की सिफारिश की है, उस पर ध्यान दिया जाए। इस इल्जाम का आधार अमेरिका स्थित कथित सिख फॉर जस्टिस गुट का एक वीडियो है। इस गुट का नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू है, जिसे भारत सरकार ने वांछित आतंकवादी घोषित कर रखा है। वही पन्नू जिसकी कथित हत्या की कोशिश में शामिल होने का आरोप भारत सरकार पर अमेरिका ने लगाया है। इस वीडियो को आधार बना कर वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन इंडिया (डब्लूएचएफआई) नामक संगठन के कार्यकर्ता आशू मोंगिया ने उप-राज्यपाल के पास जांच कराने की अर्जी दी। उप-राज्यपाल ने सीधे इसे एनआईए जांच के योग्य माना और अपनी सिफारिश केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेज दी है। डब्लूएचएफआई सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के इको-सिस्टम से संबंधित संगठन है। इसलिए उसकी अर्जी को फेस वैल्यू पर लेना कितना उचित है, यह सवाल उठना लाजिमी है।
प्रश्न है कि क्या पैसे के वास्तव में लेन-देन का कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य उप-राज्यपाल को सौंपा गया है? अगर केजरीवाल या उनकी पार्टी पर विदेशी स्रोत से- उस पर भी आतंकवादी गुट से पैसा लेने के प्रथम दृष्टया सबूत हों, तो उनका कोई बचाव नहीं हो सकता। बेशक उनके खिलाफ गहन जांच होनी चाहिए। मगर उप-राज्यपाल के निर्णय का समय महत्त्वपूर्ण है। जब आम चुनाव की बिसातें बिछी हुई हैं, तब मुख्यमंत्री जैसे पद पर आसीन एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के नेता पर आतंकवाद से संबंधित होने की जांच शुरू कराना इस निर्णय को संदिग्ध बनाता है। क्या उप-राज्यपाल एक महीना और- यानी चुनाव खत्म होने तक- ठहर नहीं सकते थे? दरअसल, हालिया वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्र सरकार और सरकारी एजेंसियों का रिकॉर्ड ऐसा है कि ऐसी हर कार्रवाई एक नकारात्मक धारणा उत्पन्न करती है। इन हालात में यह और भी जरूरी है कि ऊंचे पदों पर बैठे लोग इस तरह के निर्णय अधिक सावधानी से लें।