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तैयार तो होना पड़ेगा

एआई के उपयोग ने ऑटोमेशन की प्रक्रिया को और तेज कर दिया है। कंप्यूटर और इंटरनेट के आगमन के साथ ऑटोमेशन प्रचलित हुआ था- अब उसका अगला चरण हमारे सामने है। अब छोटे और मध्यम आकार की कंपनियां भी ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है।

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के बढ़ते इस्तेमाल से उद्योग और कारोबार जगत में हलचल मचने की खबरें अब लगातार आ रही हैं। खासकर ऐसा विकसित अर्थव्यवस्थाओं में हो रहा है। एआई के उपयोग ने ऑटोमेशन की प्रक्रिया को और तेज कर दिया है। कंप्यूटर और इंटरनेट के आगमन के साथ ऑटोमेशन प्रचलित हुआ था- अब उसका अगला चरण हमारे सामने है। अब छोटे और मध्यम आकार की कंपनियां भी ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है। नतीजतन, कामगारों की संख्या लगातार घटती जा रही है। जर्मनी में जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक करीब 17 लाख लोगों के रिटायर होने के बाद उनकी जगहों को इनसान से नहीं भरा जा जाएगा। मानव संसाधन प्रबंधन सेवा मुहैया कराने वाली एक यूरोपीय कंपनी के मुताबिक रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ऑटोमेशन की उन्नत तकनीकों का असर बहुत ज्यादा होगा। लंबे समय में ये तकनीकें कामकाजी दुनिया में गेम चेंजर साबित होंगी। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के मुताबिक कंपनियों के कामकाज में रोबोट्स के इस्तेमाल में 2018 के बाद से औसतन चार प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।

विशेषज्ञों के मुताबिक बढ़ता ऑटोमेशन यह दिखाता है कि रोबोट्स का इस्तेमाल आसान हो गया है। इनकी प्रोग्रामिंग में अब खास हुनर की जरूरत नहीं पड़ती। ज्यादार रोबोड्स ऐसे इंटरफेस के साथ आ रहे हैं, जिनमें स्मार्टफोन जैसे टचस्क्रीन हैं। इनसे बेशक कंपनियों में कामकाज आसान हुआ है। लेकिन रोजगार के मोर्चे पर चुनौती बढ़ रही है। तजुर्बा यह है कि हर तकनीक अपने साथ नई संस्कृति लेकर आती है। उससे कुछ रोजगार विलुप्त होते हैं, तो कुछ नए रोजगार पैदा भी होते हैँ। मगर एआई संचालित ऑटोमेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके इस्तेमाल से कितने नए अवसर पैदा होंगे, कहना कठिन है। ऑटोमेशन के पिछले दौर में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर घटे थे। बहरहाल, यह मुद्दा रोने का नहीं है। इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि प्रगति और आविष्कारों को रोका नहीं जा सकता है। इसलिए चुनौती यह है कि समाज और सरकारें नई बन रही कार्य संस्कृति के मुताबिक योजनाएं अभी से बनाएं। जो ऐसा करने में चूकेगा, आने वाले युग में उसकी मुसीबत बढ़ जाएगी।

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