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जिसके पास विकल्प है

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पारंपरिक सोच में ऐसी समझ प्रचलित कर दी गई है, जिसके तहत ‘अर्थव्यवस्था’ और आम जन के हित परस्पर विरोधी दिखने लगे हैं। एक तरफ अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन करती है, और लगे हाथ आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बदतर होती चली जाती है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में इस वैश्विक ट्रेंड की पुष्टि हुई है कि सोच के पारंपरिक खांचों में बंधी पार्टियां अब लोगों को मंजूर नहीं हैं। इसलिए कि उनके पास लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं का कोई जवाब नहीं है। पारंपरिक सोच में ऐसी समझ प्रचलित कर दी गई है, जिसके तहत ‘अर्थव्यवस्था’ और आम जन के हित परस्पर विरोधी दिखने लगे हैं। एक तरफ अर्थव्यवस्था सुधरती है या बेहतर प्रदर्शन करती है, और लगे हाथ आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बदतर होती जाती है। 2022 के अरागयला (जन विद्रोह) के बाद श्रीलंका के सत्ता तंत्र ने उसके पहले के संसदीय चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली पार्टी के नेता रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति बना दिया। घिसे-पीटे रास्ते चल पर चलते हुए विक्रमसिंघे ने आईएमएफ की पनाह में जाकर अभूतपूर्व आर्थिक संकट का समाधान ढूंढने की कोशिश की। आईएमएफ की कठोर शर्तों को स्वीकार करते हुए विक्रमसिंघे सरकार ने उससे ऋण दिया। इसके तहत खाद्य एवं ऊर्जा सहित तमाम सब्सिडी खत्म कर दी गई। मध्य वर्ग एवं आम जन पर टैक्स का बोझ बढ़ा दिया गया।

नतीजतन, आज बहुसंख्यक जनता की हालत 2022 से भी बदतर बताई जाती है। विक्रमसिंघे की घोर अलोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रपति चुनाव में पारंपरिक शक्तियों ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी नेता एसजेबी के सजिता प्रेमदासा पर दांव लगाया। प्रेमदासा ने बिना कोई वैकल्पिक नीति सामने रखे खुद को उद्धारक के रूप में पेश किया। लेकिन इसी बीच मार्क्सवादी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेतृत्व में 20 से अधिक जन संगठनों ने नेशनल पीपुल्स पॉवर (एनपीपी) नाम का मोर्चा बनाया। एनपीपी ने लीक से हट कर आम जन केंद्रित आर्थिक नीतियों के साथ वैकल्पिक योजना मतदाताओं के सामने रखी। बतौर एनपीपी उम्मीदवार जेवीपी के 56 वर्षीय करिश्माई नेता अनूरा कुमारा दिसानायके अब देश का राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। ‘अर्थव्यवस्था’ को पटरी पर लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया में विक्रमसिंघे की खूब तारीफ हुई थी। लेकिन श्रीलंका की जनता ने उन्हें बुरी तरह ठुकरा दिया है। वे 20 प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर पाए। उधर प्रेमदासा भी 30 फीसदी वोट के आसपास सिमट गए।

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By NI Editorial

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