तेलंगाना में जातीय सर्वेक्षण से सामने आईं सूचनाएं पहले से मौजूद रहे मोटे अनुमान के अनुरूप ही हैं। बहरहाल, अब सवाल है कि इसके बाद तेलंगाना सरकार का क्या कार्यक्रम है? वह पिछड़े समूहों के लिए क्या विशेष कदम उठाने जा रही है?
तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने जातीय सर्वेक्षण कराया। सामने आए आंकड़ों को अब सार्वजनिक कर दिया गया है। बिहार में जब नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ थे, तब उनकी साझा सरकार ने जातीय सर्वे कराया था। ये दीगर बात है कि नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उस सर्वे को “फर्जी” बता दिया। खैर, अब बिहार की तरह ही तेलंगाना के सर्वे से भी कोई चौंकाने वाली जानकारी सामने नहीं आई है। दशकीय जनगणना में अनुसूचित जाति- जनजातियों, तथा धार्मिक समूहों की पहचान के साथ गिनती होती रही है।
इसलिए उनके आधिकारिक आंकड़े पहले से मौजूद हैं। जातीय सर्वे की मांग का संबंध असल में ओबीसी की गणना से है। मंडल आयोग ने अनुमान लगाया था कि भारत में ओबीसी की संख्या औसतन 52 फीसदी है। तेलंगाना के सर्वे से सामने आया है कि वहां हिंदू समुदाय में ये संख्या 46.24 प्रतिशत और मुस्लिम समुदाय में 10.8 प्रतिशत है। यानी ओबीसी की कुल संख्या 56 फीसदी है। अनुसूचित जाति की आबादी 17.43 और अनुसूचित जनजाति की 10.45 प्रतिशत है। सामान्य मुस्लिम वर्ग की आबादी 2.48 सहित कुल मुस्लिम आबादी 12.56 प्रतिशत है। हिंदू समुदाय एवं अन्य धार्मिक समूहों के सामान्य वर्ग की जनसंख्या 15.79 फीसदी है। ये सब सूचनाएं पहले से मौजूद रहे मोटे अनुमान के अनुरूप ही हैं।
बहरहाल, अब चूंकि सर्वे से यह जानकारी सामने आई है, तो सवाल है कि इसके बाद तेलंगाना की कांग्रेस सरकार का क्या कार्यक्रम है? वह पिछड़े, दलित, एवं तमाम समूहों के गरीबों के लिए क्या विशेष कदम उठाने जा रही है? आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी करते रहे हैं, लेकिन वह एक प्रतीकात्मक कदम से ज्यादा कुछ नहीं होगा। वैसे भी उसकी संवैधानिक वैधता संदिग्ध है। असल सवाल पिछड़ापन दूर करने का है। बिहार में इसके लिए कोई योजना सामने नहीं आई। ना ही राहुल गांधी ने ऐसा कोई संकेत दिया है। इसके अभाव में यह सारा मुद्दा खोखला हो जाता है। अब कांग्रेस ने ऐसी ठोस योजना नहीं बताई, तो उसकी साख में और सेंध लग जाएगी।