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बड़े अवसर पर विफल

यह तो बहुत साफ है कि भारतीय क्रिकेटर अपना कुदरती खेल नहीं दिखा पाए। क्रिकेट विशेषज्ञों ने इस विफलता के लिए स्लो पिच को दोषी ठहराया है, जिस पर पहले बल्लेबाजी करना मुश्किल साबित हुआ। लेकिन यह पहलू नाकामी का बहाना नहीं हो सकता।

क्रिकेट विश्व कप टूर्नामेंट वैसे भी भारत में बड़ा अवसर होता है, लेकिन इस बार चूंकि आरंभ से ही इसके साथ एक दूसरे प्रयोजन के भी जुड़े होने का संकेत था, इसलिए यह मौका सामान्य से अधिक महत्त्वपूर्ण था। यह संयोग भी बना कि इस मौके पर भारतीय टीम क्लिक करती नजर आई। उसने सेमीफाइनल तक के अपने सभी आरंभिक दस मैच जीत लिए। इससे भारत के क्रिकेट प्रेमियों की उम्मीदें आसमान पर पहुंचीं और दूसरा प्रयोजन भी परवान चढ़ता हुआ दिखा। यह प्रयोजन “विकसित भारत” के उस कथानक से जुड़ा हुआ था, जिसके बारें चर्चा है कि अगले आम चुनाव में वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य नैरेटिव होगा। यानी रविवार को भारत विश्व विजेता बन जाता तो, यह सफलता “सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था”, जी-20 की सफल मेजबानी, चंद्रयान और गगनयान जैसी मिसालों की श्रेणी में शामिल हो जाती। अहमदाबाद के नरेंद्र दामोदार दास मोदी स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के कप्तान रोहित शर्मा को ट्रॉफी सौंपते और उस तस्वीर का दूसरे प्रयोजन से संबंधित प्रचार अभियान में एक खास स्थान बन जाता।

मगर भारतीय क्रिकेटर करोड़ों देश वासियों की उम्मीदों के साथ-साथ दूसरे प्रयोजन से संबंधित आकांक्षाओं का बोझ ढोने में डगमगा गए। यह तो बहुत साफ था कि वे अपना कुदरती खेल इस बड़े मौके पर नहीं दिखा पाए। क्रिकेट विशेषज्ञों ने इस विफलता के लिए स्लो पिच को दोषी ठहराया है, जिस पर पहले बल्लेबाजी करना मुश्किल साबित हुआ। लेकिन यह पहलू नाकामी का बहाना नहीं हो सकता। आखिर पिच दोनों टीमों के लिए समान थी और सारा माहौल भारतीय टीम के पक्ष में था। बहरहाल, भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के सामने अब यह अप्रिय सच है कि उनकी टीम पूरी प्रतियोगिता में सबसे अच्छा खेलने के बावजूद अंतिम मौके पर आकर नाकाम हो गई। इससे विश्व चैंपियन होने का भारत के क्रिकेट प्रेमियों का इंतजार और लंबा हो गया है। 2013 में चैंपियन्स ट्रॉफी जीतने के बाद से क्रिकेट के किसी भी संस्करण में भारत कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं जीत पाया है। क्या अगले जून में वेस्ट इंडीज-अमेरिका में होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप में हार का ये सिलसिला टूटेगा?

By NI Editorial

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