राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

पिटे नारों के सहारे!

ओबीसी ध्रुवीकरण की राजनीति का एक्सपायरी डेट गुजर चुका है। गुजरे दशकों में भाजपा ने जातीय प्रतिनिधित्व की राजनीति इतनी कुशलता से की है कि दलित या ओबीसी की बड़ी आइडेंटिटी के आधार पर विशाल ध्रुवीकरण की जमीन खिसक चुकी है।

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का माहौल गरमा रहा है। वहां सत्ता के बड़े दावेदार अब खुद को प्रचार में झोंक रहे हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर वैचारिक दिवालियापन का शिकार होने और अर्बन नक्सल्स के हाथ में खेलने का आरोप लगाया। अर्बन नक्सल की बात एक नैरेटिव है, जिसके जरिए गुजरे कुछ वर्षों से भाजपा अपने विपक्षियों को घेरती रही है। इसलिए इस आरोप को नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन जहां तक वैचारिक दिवालियेपन की बात है, तो कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष के संदर्भ में कई बार यह बात दमदार लगती है। मोदी सरकार के साढ़े नौ वर्ष के शासनकाल में अगर विपक्षी पार्टियां जनता को यह नहीं बता पाई हैं कि उनका सकारात्मक एजेंडा क्या है, तो ऐसे आरोप अगर उन पर चिपकते दिखें, तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने विदेश दौरों के समय कुछ नया चिंतन सामने रखते सुने जाते हैं। मगर देश लौटने के बाद वे बातें उनके शब्दकोश से कहीं गायब हो जाती हैं। यहां उन्हें लगता है कि जज्बाती मुद्दे ही चुनाव जीतने का फॉर्मूला हैं। इस सिलसिले में उनमें जातीय जनगणना और ओबीसी की उपेक्षा को लेकर प्रेम और जगा है। केंद्रीय सचिवों में सिर्फ तीन ओबीसी होने की बातें वे जनसभाओं में उस तरह कह रहे हैं, जैसे कि यह कोई नई जानकारी वो ढूंढ लाए हैँ। उन्हें लगता होगा कि इससे ओबीसी जातियां कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो जाएंगी। मगर दिक्कत यह है कि यह राजनीति दशक भर से ज्यादा पुरानी हो चुकी है। इस बीच भाजपा ने जातीय प्रतिनिधित्व की राजनीति इतनी कुशलता से की है कि दलित या ओबीसी की बड़ी आइडेंटिटी के आधार पर उस श्रेणी में आने वाली तमाम जातियों के ध्रुवीकरण की जमीन खिसक चुकी है। ऐसा नहीं होता, तो मंडलवादी पार्टियां आज दिग्भ्रमित और संघर्ष करती नज़र नहीं आतीं। जाहिर है, राहुल गांधी जिन नारों का सहारा ले रहे हैं, उनका एक्सपायरी डेट गुजर चुका है। उधर इस क्रम में यह भी संभव है कि राहुल गांधी के नारों से कांग्रेस के कुछ परंपरागत समर्थक बिदक जाएं।

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *