नई दिल्ली । भारत के व्यापार जगत में एक युग का अंत हो गया है। रतन टाटा, जो भारतीय उद्योग और समाज में अपनी सादगी, नेतृत्व क्षमता और दानशीलता के लिए जाने जाते थे, अब हमारे बीच नहीं हैं। उनकी असाधारण जीवनशैली, विनम्रता, और व्यवसायिक दृष्टिकोण ने उन्हें सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक आदर्श व्यक्ति बना दिया था।
उनका नाम हमेशा टाटा समूह की महान उपलब्धियों और मानवता की सेवा के लिए किए गए महान कार्यों के साथ जुड़ा रहेगा। रतन टाटा का जीवन एक ऐसी कहानी है, जिसे सादगी और दृढ़ संकल्प के साथ एक उद्योगपति के रूप में जीवन जीने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
आरंभिक जीवन और शिक्षा
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुम्बई में हुआ था। वे टाटा परिवार के सदस्य थे, जो भारतीय व्यापार जगत के सबसे बड़े और सम्मानित परिवारों में से एक है। रतन टाटा की परवरिश उनके दादा-दादी के साथ हुई, क्योंकि उनके माता-पिता का तलाक हो गया था, जब रतन सिर्फ 10 साल के थे। उनकी शिक्षा अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग में हुई, और उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया।
रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत एक साधारण प्रशिक्षु के रूप में टाटा स्टील से की, जहां वे शॉप फ्लोर पर श्रमिकों की तरह काम करते थे। उनके इस दृष्टिकोण ने उन्हें कंपनी के जमीनी स्तर पर काम करने की बारीकियों को समझने का अवसर दिया। उनके करियर का यही साधारण आरंभ उनके विनम्र व्यक्तित्व का प्रमाण है, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाता है।
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नेतृत्व की ज़िम्मेदारी
1991 में, जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को टाटा समूह का अध्यक्ष नियुक्त किया। उस समय, यह निर्णय विवादास्पद था क्योंकि कई लोग इसे उचित नहीं मानते थे। टाटा समूह उस वक्त कई अलग-अलग हिस्सों में बंटा हुआ था और इसमें एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत थी। रतन टाटा ने अपनी समझदारी, मेहनत और दूरदर्शिता से न केवल समूह को संगठित किया, बल्कि उसे एक वैश्विक ब्रांड में तब्दील कर दिया।
टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने टाटा इंडस्ट्रीज, टेटली, कोरस, जगुआर लैंड रोवर, और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) जैसे ब्रांड्स को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। 2000 में टेटली का अधिग्रहण और 2008 में जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था, जो उनके व्यावसायिक कौशल और दूरदर्शिता का प्रतीक था। उनके नेतृत्व में, टाटा मोटर्स ने नैनो कार का निर्माण किया, जो दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में जानी गई।
सादगी की मिसाल
रतन टाटा की सादगी और विनम्रता हमेशा उनकी पहचान रही। उनका जीवन और कार्यशैली दिखावे से बहुत दूर थी। रतन टाटा अकेले वीआईपी थे, जो बिना किसी सहायक के अपने बैग और फाइलें उठाकर यात्रा करते थे। 1992 में इंडियन एयरलाइंस द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, उन्हें दिल्ली-मुंबई उड़ान के दौरान सबसे प्रभावशाली यात्री के रूप में चुना गया था। फ्लाइट अटेंडेंट्स ने बताया कि रतन टाटा कभी अपनी पसंदीदा कॉफी न मिलने पर शिकायत नहीं करते थे, बल्कि अपने काम में व्यस्त रहते थे।
उनकी सादगी का एक और उदाहरण तब सामने आया जब उन्होंने टाटा संस के प्रमुख बनने के बाद जेआरडी टाटा के कार्यालय में बैठने के बजाय अपने लिए एक साधारण कमरा बनवाया। वे कुत्तों से बेहद प्यार करते थे, खासकर अपने दो जर्मन शेफर्ड टीटो और टैंगो से। बॉम्बे हाउस, जो टाटा समूह का मुख्यालय था, में वे अक्सर आवारा कुत्तों को अपने साथ लिफ्ट में लेकर जाते थे और उनकी देखभाल करते थे।
मानवीय दृष्टिकोण और दानशीलता
रतन टाटा को सिर्फ एक सफल उद्योगपति के रूप में ही नहीं, बल्कि एक महान दानदाता के रूप में भी जाना जाता है। उनके दान कार्यों की लिस्ट काफी लंबी है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास में अनेक परियोजनाएं शुरू कीं। उन्होंने टाटा एजुकेशन एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट की स्थापना की, जो शिक्षा के क्षेत्र में कई गरीब बच्चों की सहायता करता है।
उनकी परोपकारिता का एक और उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स द्वारा दिए जा रहे रॉकफेलर फाउंडेशन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार को ठुकरा दिया क्योंकि उस दिन उनका कुत्ता बीमार था। यह उनके जीवन के मानवीय पहलू को दर्शाता है।
विवाद और आलोचनाएं
रतन टाटा का व्यावसायिक जीवन हमेशा सुर्खियों में रहा, और कई बार आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। जब टाटा स्टील ने कोरस का अधिग्रहण किया, तब कुछ विश्लेषकों ने इसे महंगा सौदा बताया। उनके विदेशी अधिग्रहणों, जैसे जगुआर और लैंड रोवर, पर भी सवाल उठाए गए, और यह तर्क दिया गया कि इससे टाटा समूह को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।
इसके अलावा, 2020 में टाटा समूह के तनिष्क ब्रांड द्वारा जारी किए गए एक विज्ञापन को वापस लेने का निर्णय भी आलोचनाओं के घेरे में आया। इस विज्ञापन में सांस्कृतिक समन्वय का संदेश था, लेकिन इसे दक्षिणपंथी समूहों ने विरोध किया, जिसके कारण इसे हटाना पड़ा। रतन टाटा ने इस विवाद के बावजूद हमेशा सामाजिक सद्भाव की वकालत की।
एकाकी जीवन और निजता
रतन टाटा ने अपने व्यक्तिगत जीवन को हमेशा बहुत ही निजी रखा। वे अविवाहित रहे और अपने निजी जीवन को सार्वजनिक जीवन से अलग रखा। उनके दोस्तों और सहयोगियों का कहना है कि रतन टाटा बहुत गहरे और जटिल व्यक्तित्व के मालिक थे। बॉम्बे डाइंग के प्रमुख नुस्ली वाडिया ने कहा था कि रतन टाटा को पूरी तरह से कभी कोई नहीं समझ सका, वे एक जटिल व्यक्ति थे, जिनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों में एक दूरी रही।
रतन टाटा ने एक बार स्वीकार किया था कि उन्हें अपनी निजता बहुत प्रिय थी। वे मिलनसार नहीं थे, लेकिन असामाजिक भी नहीं थे। उनके करीबी दोस्तों का कहना है कि वे एकाकी जीवन जीते थे और अपने काम में ही संतुष्टि पाते थे।
अंतिम समय और विरासत
रतन टाटा का जीवन हमेशा प्रेरणादायक रहा है, और उनका निधन न केवल टाटा समूह के लिए, बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने भारतीय उद्योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई और अपनी सादगी और परोपकारिता से समाज में एक विशेष स्थान बनाया।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सादगी, विनम्रता और कठिन परिश्रम से हम किसी भी ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं। उन्होंने अपने जीवन में दिखावे से हमेशा दूरी बनाई और अपने काम को ही प्राथमिकता दी।
रतन टाटा का निधन एक युग का अंत है, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी। टाटा समूह की सफलता, उनकी परोपकारिता और उनके नेतृत्व में हुए सुधारों को भारत और विश्व कभी नहीं भूलेगा। रतन टाटा भारतीय उद्योग और समाज के लिए एक ऐसी मिसाल बन गए हैं, जिसे आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी।
उनकी सादगी, विनम्रता, और नेतृत्व की कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता का मतलब केवल धन और सत्ता नहीं है, बल्कि यह भी है कि आप अपने जीवन में कितने लोगों को प्रेरित करते हैं और समाज को किस तरह से बेहतर बनाते हैं। रतन टाटा का जीवन एक प्रेरणा है, और वे हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।