अमरीकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन चीन की यात्रा पर हैं और पूरी दुनिया की इस पर निगाह है। पिछले पांच सालों में चीन की यात्रा करने वाले वे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हैं। उनकी यात्रा चीनी जासूसी गुब्बारों के विवाद के छह महीने बाद हो रही है। गुब्बारों के चलते उनकी यात्रा अचानक स्थगित हो गई थी।इससे पहले से ही चले आ रहे तनावपूर्ण रिश्ते और खराब हो गए थे।दोनों देशों में व्यापार, टेक्नोलॉजी, क्षेत्रीय सुरक्षा जैसे कई मसले हैंजिनको लेकर दोनों सुपर अर्थव्यवस्थाओं के बीच खटपट है।
बीजिंग और वाशिंगटन में बैठे ज्ञानी इस यात्रा से किसी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं कर रहे हैं। लेकिन फिर भी ब्लिंकन और अन्य अमेरिकी अधिकारियों ने उम्मीद जाहिर की है कि इससे रचनात्मक कूटनीति का दौर शुरू होगा। हालाँकि अमेरिका के बरक्स चीन का रवैया हाल में टकरावपूर्ण रहा है जिससे यह चिंता भी है कि बीजिंग में होने वाली बैठकों से सद्भाव से ज्यादा कटुता पैदा होगी।
अमेरिका से रवाना होने के पहले ब्लिंकन ने कहा कि वे ‘‘दोनों देशों के रिश्तों को जिम्मेदाराना बनाने के लिए ऐसे तरीके ढूंढ़ने का प्रयास करेंगे जिनसे दोनों के बीच गलतफहमियां पैदा नहीं हों। जब दो देशों की बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा हो तब सतत कूटनीतिक कदम उठाए जाने की ज़रुरत होती है ताकि प्रतिस्पर्धा टकराव या विवाद में तब्दील न हो जाए।”
दो दिनों की इस यात्रा में दोनों देश एक दूसरे के प्रति अपनी-अपनी शिकायतों और जिन मुद्दों पर चर्चा की जानी है उनकी सूची पेश करेंगे। इससे यह अनुमान लगाया जा सकेगा कि चीन और अमेरिका के बीच कड़वाहट जल्द ही ख़त्म हो सकेगी या नहीं। अमेरिका के लिए आला लेवल की डिप्लोमेसी महत्वपूर्ण है। उसका कहना है कि दोनों देशों के बीच संवाद के तार जुड़ने चाहिए ताकि मौजूदा तनावों को कम किया जा सके क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसी भी घटना के कारण ये तनाव गंभीर रूप धारण कर सकते हैं – जैसे दोनों देशों की नौसेना के जहाजों या विमानों की दक्षिण चीन सागर या ताईवान जलडमरूमध्य में भिडंत। इसके अलावा सुरक्षा संबंधी मामले भी हैं। चीनी जासूसी गुब्बारों के अमेरिकी आसमान में उड़ते हुए पाए जाने और चीन के आसपास के समुद्री क्षेत्र में दोनों सेनाओं के लगभग टकराव की स्थिति में पहुंचने से पहले से ही चिंतित अमेरिका की परेशानी और बढ़ गई है। वह एशिया, अफ्रीका और मध्यपूर्व में चीन के सैन्य अड्डे स्थापित करने के प्रयासों के चलते भी चौकन्ना है और उसने चीन को चेतावनी दी है कि वह रूस को यूक्रेन के साथ चल रहे उसके युद्ध में इस्तेमाल के लिए घातक हथियार न दे। क्लाइमेट चेंज, जो इससे कहीं अधिक चिंताजनक और परेशान करने वाला मुद्दा है, को इस बातचीत में कम प्राथमिकता दी जा रही है।
जहां तक चीन का सवाल है, उसे अमेरिका के आक्रामक तेवरों और आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य कदमों के ज़रियेचीन को नियंत्रित रखने की कोशिशों से खुन्नस है।इसलिए दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के एजेंडा में सबसे ऊपर होगा ताइवान का मुद्दा, जो एक स्वतंत्र आइलैंड देश है जिसे अमेरिका से सैन्य मदद मिलती है परन्तु जिसे बीजिंग अपना हिस्सा मानता है। चीन के शासक शी जिनपिंग ने ताइवान को “चीन के मूल हितों का मूल” बताया है और अमेरिका पर आरोप लगाया है कि वह ताइवान की ‘स्वतंत्रता-समर्थक’ ताकतों को बढ़ावा दे रहा है और चीन के आन्तरिक मसलों में बेजा दखलंदाजी कर रहा है।
चीन यह भी दोहराता हुआ होगा कि अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और भारत जैसी क्षेत्रीय ताकतों से अपने सामरिक रिश्ते गहरे कर चीन के साथ टकराव को न्योता दे रहा है। चीन की सबसे बड़ी इच्छा तो यह है कि अमेरिका उसे अपनी बराबरी की विश्वशक्ति के रूप में स्वीकार करे ताकि उसे पूरी दुनिया के मामलों में अमेरिका की तरह दखलंदाजी करने का हक मिल सके और उसे अमेरिका की एशिया में सैन्य मौजूदगी से खतरा महसूस न हो। ब्लिंकन की यात्रा के पहले चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेंबिन ने कहा कि अमेरिका को चाहिए कि वह चीन के मूल सरोकारों का सम्मान करे और चीन के साथ मिलकर काम करे।
दोनों देशों की एक-दूसरे से अलग-अलग अपेक्षाएं हैं। परन्तु चीन से ज्यादा अमेरिका की इच्छा है कि दोनों के बीच रिश्ते बेहतर हों और वह इसके लिए ईमानदारी से कोशिश कर रहा है। सन 2018 में अमेरिका के तब के विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो बीजिंग में कुछ समय के लिए रुके थे। वह डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल का अंतिम दौर था और पोम्पियो चीन के साथ उलझने के हामी थे। तब से यह पहली बार है कि अमेरिका का इतने उच्च स्तर का प्रतिनिधिमंडल चीन पहुंचा है। बाईडन के राज में अमेरिका भले ही चीन के बारे में उतनी कड़ी भाषा में बात नहीं कर रहा हो परन्तु उसने चीन के प्रति अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है।अमेरिका ने उच्च तकनीकी वाले सेमीकंडक्टरों, जिनका सैन्य इस्तेमाल हो सकता है, के चीन को निर्यात पर रोक लगा दी है। बाईडन प्रशासन का कहना है कि वह चीन के साथ कुछ सीमित मसलों, जैसे क्लाइमेट चेंज, पर सहयोग करने को तैयार है। एक दिलचस्प खबर है कि बीजिंग में इस साल जून में मध्य में जितनी गर्मी पड़ रही है, उतनी इसके पहले कभी नहीं पड़ी थी।
बाईडन ने शनिवार को व्हाइट हाउस कवर करने वाले रिपोर्टरों से कहा कि उन्हें “उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में वे एक बार फिर शी से मिलेंगे और हमारे बीच मतभेदों के मुद्दों के अलावा इस पर भी बातचीत करेंगे कि हमारी दोस्ती कैसे हो सकती है।” यह मौका दिल्ली में सितम्बर में होने वाली जी20 देशों की शिखर बैठक या सेनफ्रांसिस्को में नवम्बर में होने वाले एशिया-पेसेफिक इकनोमिक कोऑपरेशन समिट, जिसकी मेजबानी अमेरिका कर रहा है, में आ सकता है।
एक प्रश्न जो सबके दिमाग में है वह यह है कि क्या राष्ट्रपति शी जिनपिंग, विदेश मंत्री ब्लिंकन से मिलेंगे? जो खबरें आ रहीं हैं उनसे ऐसा लगता है कि यह इतवार और सोमवार को होने वाली बैठकों के नतीजे पर निर्भर करेगा। जानकारों का कहना है कि अगर शी और ब्लिंकन की मुलाकात होती है तो इससे दुनिया को यह सन्देश जायेगा कि चीन दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए कोशिश कर रहा है। और अगर चीन चाहता है कि अमेरिका उसे अपनी बराबरी का दर्जा दे, तो शी के लिए ऐसा करना बेहतर होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)