क्या बोरिस जॉनसन का अब भी कोई राजनैतिक भविष्य है? क्या इंग्लैंड के इस पूर्व प्रधानमंत्री की कभी सत्ता में वापसी होगी? क्या किस्मत उनका वैसे ही साथ देगी जैसा तमाम आरोपों और कानूनी मामलों में उलझे हुए उनके राजनैतिक जुड़वां डोनाल्ड ट्रंप का दे रही है?
पार्टीगेट कांड से बोरिस जॉनसन को गहरा धक्का लगा है। इस हद तक कि ऐसा लग रहा है मानों वे अपने होशोहवास खो चुके हैं। हालात यह है कि जो भी जॉनसन को समझदार कहेंगा तो ब्रिटिश मीडिया भड़क जाएगा! विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने के बाद जॉनसन ने हाउस ऑफ़ कॉमन्स से इस्तीफा दे दिया। समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान हुई पार्टियों के संबंध में उन्होंने जानते-बूझते संसद को गुमराह किया। इस सारे मामले पर जॉनसन की प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसी उनसे उम्मीद की जा सकती है – हास्यास्पद, असभ्य व कटुता व गुस्से से भरी हुई। उन्होंने पूरे घटनाक्रम को बदला लेने की कार्यवाही बताया, विशेषाधिकार समिति को ‘कंगारू कोर्ट’ की संज्ञा दी तथा रपट के निष्कर्षों को ‘पागलपन’ कहा। उन्होंने समिति की अध्यक्ष हेरिएट हर्मेन पर तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनके कलेजे में चाकू उतार दिया गया है और यह सांसदों और प्रजातंत्र के लिए बहुत बुरा दिन है।
सच्चाई ठीक उलट है। यह ब्रिटेन के लोकतंत्र के लिए गर्व का दिन है। इतिहास में पहली बार एक पूर्व प्रधानमंत्री अपनी करनी का फल भोग रहा है। अटलांटिक के उस पार अमरीका में भी पहली बार एक पूर्व राष्ट्रपति अपने भयावह अपराधों के लिए कानूनी कार्यवाही का सामना कर रहा है। राजनीति, मीडिया और सार्वजनिक जीवन के कई अन्य क्षेत्रों में जहां एक ओर बुरे लोग होते हैं, जो अपने फायदे के लिए झूठी बातें फैलाते हैं, झूठ बोलते हैं और धोखा देते कुछ गलत नहीं समझते। इन लोगों के बरक्स होते हैं वे लोग जो तथ्यों को महत्व देते हैं और सच्चाई और नियमों के पालन के पक्षधर होते हैं। जो ब्रिटेन और अमरीका में हो रहा है, क्या उसकी कल्पना हम अपने ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’ में कर सकते हैं?
महत्वपूर्ण है जनता का नजरिया। अमेरिका की जनता ट्रंप और उनके ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे के साथ है किंतु जॉनसन के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हाँ, यह ज़रूर है कि ट्रंप और जॉनसन दोनों का अपनी-अपनी पार्टियों में वफादार समर्थकों का समूह है। खासकर जॉनसन का, जिन्होंने कंजरवेटिव पार्टी को अपने नेतृत्व में केवल तीन साल पहले शानदार चुनावी जीत दिलवाई थी। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों अपने-अपने देशों में पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने लोकतंत्र का ही गला घोंटने का प्रयास किया। निःसंदेह पार्टीगेट कांड के बाद बोरिस जॉनसन अपना मज़ाकिया लहजा और लोकप्रियता खो बैठे हैं। बल्कि उनकी बातों को अब पागलपन कहा जाने लगा है।
इसलिए ब्रिटिश मीडिया ने उनके राजनैतिक करियर के अंत की भविष्यवाणी करने में कसर नहीं छोड़ी है। जिस तरह अमरीकी मीडिया हमेशा से ट्रम्प के खिलाफ था उसी तरह ब्रिटिश मीडिया भी शुरू से बोरिस जॉनसन और 10 डाउनिंग स्ट्रीट में उनकी हरकतों के खिलाफ रहा है। उसकी नजर में व एक मुसीबत थे जो ब्रिटेन को बर्बाद कर देती। जैसी कि टोरी सासंद डेविड गाउके कहा, “सीधी सी बात यह हैकि जॉनसन एक गलत व्यक्ति थे जो प्रधानमंत्री बनने के लायक कभी भी नहीं थे”।यह सच है कि ब्रिटिश मीडिया और ज्यादातर टोरियों का मानना है कि जॉनसन का कोई राजनैतिक भविष्य नहीं बचा है। प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी विरासत को भुला दिया जायेगा। यहां तक कि कंजरवेटिव झुकाव वाली पत्रिका ‘स्पेक्टेटर’ ने अपने 15 जून के अंक में “अब हमारे पास सबूत हैं कि बोरिस जॉनसन हमें बेवकूफ समझते थे” शीर्षक लेख में लिखा, “यह अपनी तरह का अनोखा झूठा आदमी अपने पद की गरिमा को कैसे मिट्टी में मिला सका” और “इसने हम सबको मूर्ख समझा”।इसी दिन ‘द इकानामिस्ट’ ने लिखा, ‘‘ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री की राजनैतिक विरासत समाप्त हो चुकी है”।जहां तक वर्तमान ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक का सवाल है, उन्हें भी अपनी पूर्ववर्ती की निंदा न करने के कारण खरीखोटी सुनायी जा रही है। यहां तक कि बोरिस जॉनसन पर प्रतिबंध लगाया जाए या नहीं इस प्रश्न पर संसद में हुई वोटिंग से भी वे दूर रहे।
सुनक का दामन भी पूरी तरह से साफ़ नहीं है। उन्हें भी कोविड नियमों का उल्लंघन करने के लिए फाइन चुकाने का नोटिस मिल चुका है। ब्रिटिश संसद के गलियारों और मीडिया में चर्चा है कि ऋषि सुनक इस सारे पचड़े से इसलिए दूरी बनाए हुए हैं क्योंकि वे जॉनसन को नाराज नहीं करना चाहते। केवल वे ही नहीं बल्कि उनकी पार्टी के कई प्रमुख और मुखर सांसद भी हाउस ऑफ कामन्स में हुई चर्चा और विशेषाधिकार समिति की रपट पर हुए मतदान में शामिल नहीं हुए।
तभी इस बार गर्मियों में ब्रिटेन की हवा में निराशा घुली हुई है। ब्रेक्सिट, बोरिस और उसके बाद हुई अफरातफरी के नतीजे में ब्रिटिश जनता का सिर शर्म से झुक गया है। अंग्रेज स्वयं पर बहुत गर्व करते हैं इसलिए उन्हें मौजूदा हालात कठिन और खराब महसूस हो रहे होंगे। आखिरकार ब्रिटेन भी एक तरह के कुलीन वर्ग का गुलाम है – उस वर्ग का जो सत्ता को अपना हक मानता है। इसलिए अगले साल ब्रिटेन में होने वाले चुनाव अमेरिका जितने ही दिलचस्प और मनोरंजक होंगे। कंजरवेटिव पार्टी के नेताओं को लोगों के साथ जुड़ने में कठिनाई होगी और जनता के लिए भी कंजरवेटिवों को ‘बदलाव का वाहक’ मानना कठिन होगा।
जहां तक बोरिस जॉनसन का सवाल है, वे लोकलुभावन नेता हैं। उन्हें पूरी तरह खारिज करना जल्दबाजी होगी। उनके पास वफादार समर्थकों की अच्छी-खासी फौज है जो यूक्रेन युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व और टोरियों की खुले बाजार की नीति के उनके झुकाव के आधार पर उनकी वापसी की बात करते हैं। वे असभ्य भले ही हों परन्तु उन्हें चुनाव प्रचार करने की कला में जबरदस्त महारत हासिल है। उनकी वापसी का रास्ता ऊबड़-खाबड़ स्पीड ब्रेकरों भरा होगा लेकिन लोकलुभावन बातों का हथियार उनके पास है और वह काफी कारगर होता है। सन 2024 दिलचस्प होने वाला है जिसमें बहुतों की किस्मत का इम्तहान होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)