कर्नाटक में सरकार बनते ही पहली कैबिनेट बैठक में कांग्रेस की सरकार ने चुनाव में किए गए पांच वादों को पूरा करने का फैसला किया। दूसरी कैबिनेट में इस पर अमल की तारीखें तय हुईं। कांग्रेस ने चुनाव के समय जो पांच गारंटियां दी थीं उनको कानून बनाने का ऐलान कर दिया गया है। कर्नाटक में दी गई गारंटियों की तर्ज पर कांग्रेस ने अभी से हरियाणा और मध्य प्रदेश में मुफ्त की वस्तुएं और सेवाएं देने की घोषणा शुरू कर दी है। राजस्थान में जहां उसकी सरकार है वहां इन गारंटियों पर अमल किया जा रहा है। इसी तरह पिछले साल हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा किया था, जिसे सरकार बनने के तुरंत बाद लागू कर दिया गया। पुरानी पेंशन योजना राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी लागू कर दी गई है। छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने नागरिकों को नकद पैसे देने की न्याय योजना की घोषणा की थी, जिसे राज्य सरकार ने लागू कर दिया है। तभी सवाल है कि कांग्रेस की पांच गारंटी हो या पुरानी पेंशन योजना हो या न्याय योजना हो, इनका क्या जवाब भाजपा के पास है? भाजपा पारंपरिक रूप से हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व के मुद्दे पर लड़ेगी या वह भी कांग्रेस की तरह गारंटियों, वादों की राजनीति में उतरेगी?
ऐसा नहीं है कि भाजपा ने नागरिकों से कुछ वस्तुएं और सेवाएं मुफ्त में देने का वादा नहीं किया लेकिन हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में लोगों ने उस पर यकीन नहीं किया। इसका कारण यह था कि दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार थी। यह सामान्य समझदारी की बात है कि सत्तारूढ़ दल कोई वादा नहीं कर सकता है। उसे वादे पर अमल करना होता है। अगर भाजपा वादा करने की बजाय उस पर अमल कर देती तो हो सकता था कि उस पर लोगों को यकीन होता या कांग्रेस के एजेंडे का काउंटर होता। लेकिन भाजपा ने कर्नाटक में घोषणापत्र जारी किया तो कहा कि वह लोगों की पसंद का 10 किलो अनाज हर महीने देगी और हर दिन आधा किलो ‘नंदिनी’ का दूध देगी। राज्य मे उसकी सरकार थी, अगर वह ये चीजें देना शुरू कर देती तो लोगों को आकर्षित कर सकती थी। जब सरकार में रहते हुए कोई पार्टी कुछ देने की बजाय उसे देने का वादा करे तो उस पर लोगों को यकीन नहीं होता है। ऐसी स्थिति में लोग विपक्ष के वादे पर ज्यादा भरोसा करते हैं। यही हिमाचल प्रदेश में हुआ और कर्नाटक में यही दोहराया गया। तभी इस साल होने वाले चुनावों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ की स्थिति अलग है, जहां कांग्रेस की सरकार है और मध्य प्रदेश की स्थिति अलग है, जहां भाजपा की सरकार है।
भाजपा के साथ दूसरी मुश्किल यह है कि कांग्रेस जो गारंटी दे रही है या वादे कर रही है, उसको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मुफ्त की रेवड़ी’ का नाम दिया है। इससे भाजपा को दो तरह की मुश्किल हुई है। अगर वह कोई चीज मुफ्त में देने की घोषणा करती है तो हिप्पोक्रेसी जाहिर होती है। यह सवाल उठता है कि जब प्रधानमंत्री इसे राज्यों की अर्थव्यवस्था को खोखला बना देने वाली ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कह रहे हैं तो फिर भाजपा क्यों ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांट रही है। ध्यान रहे कर्नाटक में प्रधानमंत्री मोदी ने कई सभाओं में कहा कि कांग्रेस ने जितने वादे किए हैं उन्हें पूरा करने में राज्य सरकार का खजाना खाली हो जाएगा, फिर भी वादे पूरे नहीं होंगे। सो, वित्तीय अनुशासन की बात करने वाली पार्टी उसी रास्ते पर कैसे चल सकती है? दूसरी मुश्किल यह है कि अगर भाजपा ऐसी घोषणा नहीं करती है तो उसके नेता जमीन पर जनता को क्या जवाब दें?
कांग्रेस ने पांच गारंटी के तहत सभी घरों को ‘गृह ज्योति’ योजना के तहत दो सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने का वादा किया है। इसके अलावा हर परिवार की महिला मुखिया को ‘गृह लक्ष्मी’ योजना के तहत दो हजार रुपए मासिक मिलेंगे। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के हर सदस्य को ‘अन्न भाग्य’ योजना के तहत 10 किलो अनाज मुफ्त मिलेगा। ‘युवा निधि’ योजना के तहत डिग्रीधारी बेरोजगारों को तीन हजार रुपए महीना और डिप्लोमाधारी युवाओं को डेढ़ हजार रुपए महीना मिलेगा। पांचवीं गारंटी के तहत सरकारी बसों में ‘शक्ति’ योजना के तहत महिलाओं को मुफ्त यात्रा का पास मिलेगा। ध्यान रहे कर्नाटक में कांग्रेस के जीतने के और भी कारण थे। राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी, बीएस येदियुरप्पा जैसे बड़े नेता को बदल कर निराकार बसवराज बोम्मई को सीएम बनाने का फैसला, भ्रष्टाचार के आरोप, कांग्रेस का सामाजिक समीकरण और बेहतर प्रबंधन जैसे कई कारण थे। लेकिन ‘गृह ज्योति’, ‘गृह लक्ष्मी’, ‘अन्न भाग्य’, ‘युवा निधि’ और ‘शक्ति’ योजना ने गेम चेंजर का काम किया। उसके बाद पहली कैबिनेट में इन पांच योजनाओं को लागू करने की घोषणा देश के दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस के ऐसे वादों पर मतदाताओं में भरोसा बढ़ाएगी।
कर्नाटक में कांग्रेस की पांच गारंटियों को लागू करने में करीब 60 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। निश्चित रूप से इससे सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ेगा। कर्नाटक का सालाना बजट तीन लाख नौ हजार करोड़ रुपए का है, जिसमें 77,750 करोड़ रुपए का कर्ज है। कर्नाटक 19 लाख करोड़ रुपए के सकल घरेलू उत्पादन वाला राज्य है, जहां सरकार राजस्व वसूली के सिस्टम को जरा सा बेहतर करे और सोशल सेक्टर में पहले से चल रही योजनाओं का प्रबंधन करे तो इस खर्च को कम कर सकती है। मिसाल के तौर पर बिजली सेक्टर को पहले से साढ़े नौ हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी दी जा रही है। इसी तरह किसानों के लिए ‘रैयत शक्ति योजना’ चल रही है, स्वास्थ्य के क्षेत्र में ‘यशस्विनी योजना’ है, दूध की कीमत पर सरकार छह रुपए प्रति लीटर तक पहले से दे रही है। सो, पहले से कई योजनाएं चल रही हैं, जिनके साथ नई योजनाओं को मिला कर गारंटियों को पूरा किया जा सकता है। इसके लिए अरविंद केजरीवाल की तरह यह कहने की जरूरत नहीं है कि भ्रष्टाचार रोक कर उसी पैसे से लोगों को मुफ्त में काफी कुछ दिया जा सकता है। अलग अलग सरकारों में भ्रष्टाचार का स्तर ऊपर-नीचे हो सकता है लेकिन उसे पूरी तरह रोक देने और उस पैसे से लोगों की मदद करने का वादा एक यूटोपियन वादा है। केजरीवाल का मॉडल उच्च आय वर्ग के लोगों से ज्यादा पैसे वसूल कर गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के बीच बांटने का है। कांग्रेस भी यह मॉडल अपना रही है।
बहरहाल, सरकार कैसे वित्तीय अनुशासन बनाए रखेगी, कैसे कर्ज कम रखेगी ताकि ब्याज का भुगतान ज्यादा न करना पड़े, कैसे वित्तीय घाटा काबू में रखेगी यह सब आगे की सिरदर्दी होती है। उससे पहले चुनाव में वादा करने या गारंटी देने में कोई मुश्किल नहीं आती है। दूसरे अरविंद केजरीवाल की राजनीति से कांग्रेस ने यह सीख लिया है कि इस तरह की योजनाओं में ज्यादा खर्च नहीं आता है। अगर बुनियादी ढांचे के विकास को किनारे रखा जाए और समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने या अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार करने की बजाय लोगों की छोटी छोटी समस्याओं को दूर किया जाए तो उनका वोट लिया जा सकता है। हो सकता है कि लंबे समय में यह सोच नुकसानदेह हो लेकिन इसका तात्कालिक चुनावी लाभ मिल सकता है।
तभी भाजपा को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा। कर्नाटक में उसके पारंपरिक मुद्दे नहीं चले। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने वाले मुद्दों का खूब प्रचार हुआ। बाद में बजरंग बली के नारे भी लगे इसके बावजूद उसके स्थायी वोट आधार में कोई नया वोट नहीं जुड़ा। हालांकि इसका एकमात्र कारण कांग्रेस की गारंटियां नहीं थीं। और भी कारण थे। लेकिन वो कारण और राज्यों में भी होंगे, खासकर जहां भाजपा की सरकार है। केंद्र में भी भाजपा की सरकार के 10 साल पूरे होने जा रहे हैं और निश्चित रूप से कुछ सत्ता विरोधी माहौल केंद्र के खिलाफ भी होगा। इस तरह की राजनीति की शुरुआत आम आदमी पार्टी ने की है लेकिन कांग्रेस के प्रति ज्यादा भरोसा इसलिए बनेगा क्योंकि दिल्ली और पंजाब को छोड़ कर बाकी राज्यों में कांग्रेस बड़ी ताकत है। कांग्रेस से मुकाबले वाले ज्यादातर राज्यों में आप की ताकत कम है। इसलिए वह लोगों को भरोसा नहीं दिला पाएगी।