rajkummar rao

  • इंसानी जिजीविषा का नाम है ‘श्रीकांत’

    'श्रीकांत' इसलिए भी एक बेहद ज़रूरी फ़िल्म है क्योंकि ये समाज की उस दक़ियानूसी सोच पर काफी तेज़ प्रहार करती है, जिसमें दिव्यांगों को बेचारगी से देखने की संस्कृति विकसित हुई है। फ़िल्म के एक संवाद में श्रीकांत कहता है कि हमारे देश में नेत्रहीनों की आबादी सिर्फ़ दो प्रतिशत है, जिन्हें बाक़ी के अंठानबे प्रतिशत लोग भी देख नहीं पाते। फ़िल्म का संवाद काफ़ी अच्छा है। सिने-सोहबत 'कोशिश', 'दोस्ती', 'सदमा', 'ब्लैक', 'क़ाबिल', 'इक़बाल', 'मार्गेरिटा विथ अ स्ट्रॉ', 'बर्फ़ी', 'तारे ज़मीन पर' और इस तरह की बहुत सी फिल्मों और हाल ही में रिलीज़ हुई राजकुमार राव की फ़िल्म 'श्रीकांत'...