new delhi railway station

  • गलती नहीं मानने की जिद

    delhi railway station stampede : केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद घोषित या अघोषित रूप से यह नियम स्थापित किया गया कि इस सरकार में इस्तीफा नहीं होता है क्योंकि यह सरकार कोई गलती नहीं करती है। गलती चाहे जितनी बड़ी हो, हादसा चाहे जितना बड़ा हो, उसमें नुकसान चाहे जितना बड़ा हुआ हो लेकिन मानना नहीं है कि सरकार या सिस्टम की गलती है। हर बार कोई न कोई नया बहाना या नया बलि का बकरा खोजा जाता है। पिछले 10 वर्षों में बड़ी मेहनत से यह धारणा बनाई गई है कि...

  • यात्री अपनी जान की रक्षा खुद करें!

    delhi railway station stampede :  यात्रा करते समय हर व्यक्ति ने कहीं न कहीं यह लाइन पढ़ी होगी कि यात्री अपने सामान की सुरक्षा के जिम्मेदार खुद हैं। अब नए भारत में इसे बदल कर लिखना चाहिए कि यात्री अपनी जान के जिम्मेदार खुद हैं। कहीं भी जाने के लिए उनको अपनी जान हथेली पर लेकर घर से निकलना है और अगर कहीं भी हथेली से फिसल कर उनकी जान चली जाती है उसके लिए सरकार या व्यवस्था जिम्मेदार नहीं होगी। महाकुंभ में मौनी अमावस्या की रात को हुई भगदड़ से लेकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे तक...

  • हादसे की पुष्टि पीएम ही करेंगे!

    delhi railway station stampede :  ऐसा लग रहा है कि भारत में एक नया प्रोटोकॉल विकसित हो रहा है। इसके तहत देश में कहीं भी कोई दुर्घटना होगी तो उसे तब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक प्रधानमंत्री उसकी पुष्टि नहीं कर देते हैं। अगर कहीं हादसा हुआ है और उसमें लोगों की मौत हुई तो लोगों को तब तक मरा हुआ नहीं माना जाएगा, जब तक प्रधानमंत्री सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अपने अकाउंट पर उनको श्रद्धांजलि नहीं देते हैं और उनके परिजनों के प्रति संवेदना नहीं जताते हैं। इसी के साथ एक दूसरा प्रोटोकॉल यह भी दिख रहा...

  • बदइंतजामियों की इंतहा

    delhi railway station stampede : महापर्व महाकुंभ को जन-भावनाओं के अनियंत्रित उभार का अवसर बना दिया गया है। नतीजतन, प्रयागराज जाने का रेला चल पड़ा। जबकि उसे संभालने के लिए जिस की प्रशासनिक चुस्ती और संवेदनशीलता की जरूरत थी, उसका पूरा अभाव दिखा है। राष्ट्रीय राजधानी के प्रमुख रेलवे स्टेशन पर भगदड़ से बड़ी संख्या में लोगों की मौत की घटना को राजनीतिक और प्रशासनिक बदइंतजामी की इंतहा के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक इसलिए कि इस बार विशेष सुनियोजित प्रचार परियोजना के जरिए आस्था के महापर्व महाकुंभ को जन-भावनाओं के अनियंत्रित उभार के अवसर में तब्दील...