धर्म वही जो आचरण में सदाचारी बनाए।
मनुस्मृति में धर्म के अर्थों के संबंध में वृहद वर्णन अंकित है। धर्म शब्द धृञ् धारणे धातु से मन् प्रत्यय जोड़कर निष्पन्न होता है। अर्थात -जो धारण, व्यवहार में लाने अथवा ग्रहण करने योग्य है। धारण करने योग्य, सर्वोचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह धर्म हैं। इस प्रकार यह हमारा जाना-पहचाना कर्म ही है। मनुस्मृति 1/108 में कहा गया है- आचारः परमो धर्मः। अर्थात- आचार परम धर्म है। आचार का अर्थ है- सदाचार, न कि दुराचार। धर्म का अर्थ कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण, जीने का सत्य मार्ग, पक्षपात रहित व्यवहार, व्यावहारिक मर्यादाएं आदि लगाया जाता है।...