Democracy

  • न्यायपालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक…!

    भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने आज पुनः यह सिद्ध कर दिया है कि प्रजातंत्र के चार अंगों- विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और खबर पालिका में न्याय पालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक है, कथित अवैध निर्माणों के नाम पर लोगों के घरों को ‘जमींदोज’ कर देने की शासकीय मनमानी पूर्ण प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय ने एकदम गैर कानूनी व गलत माना है तथा शासन-प्रशासन को सख्त निर्देश दिए है कि बिना ठोस गैरकानूनी सबूतों के ऐसी कार्यवाही कतई नही की जानी चाहिए। इस तरह आज फिर एक बार यह स्पष्ट हो गया है कि प्रजातंत्र की सही संरक्षक...

  • लोकतंत्र में सामंतवाद

    कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप इस हद तक चढ़ा कि पार्टी की जड़ें कमजोर करने में उसकी प्रमुख भूमिका रही। लेकिन तब जो दल और नेता कांग्रेस को निशाना बनाते थे, मौका मिलते ही वे सियासत में अपना वंश बढ़ाने में जुट गए। वैसे चर्चा पहले से थी, लेकिन अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने बेटे उदयनिधि मारन को अपना औपचारिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। ठीक उसी तरह जैसे उनके पिता एम। करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। करुणानिधि ने अपनी दूसरी संतानों को भी राजनीति में यथासंभव स्थापित करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई। उदयनिधि...

  • विपक्ष और कांग्रेस समझदारी से चले

    समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के पिछले कुछ अनुभव अच्छे नहीं रहे। इसलिए और भी सावधानी बरतनी होगी। क्योंकि अखिलेश यादव में इतना बड़प्पन है कि वे अपनी कटु आलोचक “बुआजी” बहन मायावती से भी संबंध सुधारने में सद्भावना से पहल कर रहे हैं। यही नीति ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार व लालू यादव आदि को भी अपनानी होगी। तभी ये सब दल भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत बना पायेंगे। जून 2024 के चुनाव परिणामों के बाद राहुल गांधी का ग्राफ काफ़ी बढ़ गया है। बेशक इसके लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष किया और भारत के आधुनिक इतिहास में शायद सबसे...

  • भीड़ है तो बुद्धी संभव ही नहीं!

    सोचना संभव नहीं है पर देखना तो है! और हाल में दिखा क्या बतलाता है? भारत तांबा है सोना नहीं! यदि ओलंपिक में लौह पदक होते तो वे भी हमारे हिस्से ज्यादा आते! चार साल में ओलंपिक, हर वर्ष नोबेल समारोह, हर वर्ष ऑस्कर से लेकर श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के नामांकन से ले कर विज्ञान अनुसंधान की खोज की उपलब्धियों का जो सालाना लेखाजोखा सुनने को मिलता है तो कम से कम यह भान होना चाहिए कि हमारे स्वर्णिम काल के कहां-क्या लक्षण है? हाल में यह भी सुना था कि बांग्लादेश में हिंदूओं पर हमले हुए, उन्हे जान-माल के...

  • सच्चे संघवाद की समझ कब होगी?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र का परिपक्व होना जरूरी!

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • दुनिया सब देखती है

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • गायब हो गई चमक

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • समस्या बहुत गंभीर है

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • ‘‘उलझी है सारी सियासत, चुनावी जाल में”…!

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • इंडोनेशिया के चुनाव में लोकतंत्र को खतरा?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • क्यों लिबरल डेमोक्रेसी हर जगह संकट में?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र के लिए अहम नया साल

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • चरमरा रहा है लोकतंत्र

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • भारत में कार्यपालिका की सर्वोच्चता

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र पर रोना/गाना हास्यास्पद है

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र के संकट के बीच नए अवसर भी मौजूद

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • अहिंसा लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत: सीएम योगी

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र…. विभत्स चेहरा: प्रजातंत्र के लिए ये ही दिन देखना शेष थे…?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • नागरिकों का प्रजा में बदल जाना

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

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