‘नया इंडिया’ क्यों जिंदा रहे?

क्यों सब्सक्राइब करें?

इसलिए क्योंकि नया इंडिया का लबोलुआब है-
हम न पिठ्ठू है न पक्षधर है, हम हम है और हमें
सफाई चाहिए, साफ हवा चाहिए
और आत्म-सम्मान चाहिए, हट जा ओ! (अज्ञेय)

यह जिद्द 15 मई 2010 से नया इंडिया अखबार का मिजाज है। उसकी तासीर है। तभी सोच सकते है कौन विज्ञापन देंगा? कैसे चलेगा खर्चा? कैसे रिपोर्टिग, लेखन, मार्केटिंग, एसईओ, जरूरी सहकर्मी जुटेंगे? अखबार-वेबसाइट का अपडेट होना भी भला भी कैसे संभव? नया इंडिया बिना भामशाह के था और है।

मतलब सत्ता और राजनैतिक दल या अडानी-अंबानी जैसे धन्ना सेठ व अभिव्यक्ति की आजादी के देश-विदेश के ट्रस्ट इस स्वतंत्र ‘नया इंडिया’ को सपोर्ट नहीं करते है। न हमने कभी इनके आगे हाथ फैलाया। न बिग-मीडियम केटेगरी का न्यूजपेपर होने का दावा करके बड़े-बड़े मंहगे या स्पेशल रेट में सरकारों से विज्ञापन लिए है। हमें न मांगना आता है, न मार्केटिग आती है और न जी-हुजूरी। हम न लेफ्ट है, न राइट और न मध्यमार्गी! हम तो बस सही के पक्षधर है। हर तरह की वैचारिकता, विचार भिन्नताओं में क्या सही है क्या झूठ है इसके कलमघसीट है।

बकौल अज्ञेयजी-
हमें अपनी राह चलना है।
अपनी मंजिल पहुंचना है।
हमें।

नया इंडिया क्यों? ताकि लोकल, छोटी-छोटी बातों, खबरों की बजाय राष्ट्र-दुनिया तथा मनुष्यता के बड़े-गंभीर व अस्तित्व संकट जैसे मसलों की सुध हिंदीभाषियों में बनी रहे। धरती पर फैले हुए करोड़ों-करोड उन हिंदीभाषियों का यह सवाल आगे बढ़े कि ऐसा क्यों हुआ जो हमारी हस्ती मिटती नहीं तो बनती भी नहीं! भला क्यों है झूठ, भक्ति, गुलामी की आंधियों की अंतहीन नियति?

नया इंडिया न केवल स्वतंत्र, निडर और रियल राष्ट्रवादी हैं बल्कि वह सभी तरह के विचारों का सम्मान करता है। नया इंडिया की पत्रकारिता, मानवता, मानवीय गरिमा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है, जिद्दी है। जिन भी पाठको या दर्शकों ने 16 मई 2010 से नियमित प्रकाशित हो रहे नया इंडिया अखबार का प्रिंट एडीशन पढ़ा है, या ई-पेपर और वेबसाइट के जानकार है, या जिन्होने नया इंडिया संस्थापक हरि शंकर व्यास का ईटीवी चैनल पर सालों चले सेंट्रल हॉल प्रोग्राम को देखा है, या जो 1983 में जनसत्ता शुरू होने के हरिशंकर व्यास के लगातार चले आ रहे नियमित गपशप कालम को पढ़ा है वह यह मानेंगे कि कुछ भी हो पठनीयत की कसौटी में नया इंडिया लाजवाब है नया इंडिया कभी भी किसी सत्ता प्रतिष्ठान, शासक वर्ग की मेहरबानी पर नहीं रहा। न तथाकथित धर्मनिरपेक्ष या सांप्रदायिक, दक्षिणपंथी या वामपंथी, हिंदू या गैर-हिंदू फाउंडेशन/दानदाताओं/प्रमोटरों के आगे नया इंडिया ने हाथ फैलाया। नया इंडिया सिर्फ और सिर्फ सत्य, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की निर्भयता में पत्रकारी धर्म निभाता आया है।

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हरि शंकर व्यास
संस्थापक-प्रधान संपादक

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