यह लाख टके का सवाल है कि अगर जदयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश ने पार्टी लाइन का उल्लंघन किया और उससे अलग हट कर काम किया है तो पार्टी उन पर कार्रवाई करेगी या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि पार्टी उनके खिलाफ सिर्फ बयानबाजी करेगी और यथास्थिति बनी रहने देगी? यह सवाल इसलिए है कि क्योंकि पार्टी ने अब तक उनके ऊपर चुप्पी साध रखी थी और जब नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों की बैठक बुलाई तब जाकर उनके खिलाफ बयान दिया गया। दूसरे, बयान भी पटना में पार्टी के प्रवक्ता ने दिया। पिछले दिनों केसी त्यागी को पार्टी का मुख्य प्रवक्ता बनाया गया, लेकिन उन्होंने इस पर कोई बयान नहीं दिया। इसका मतलब है कि दिल्ली और पटना में पार्टी की अलग अलग रणनीति है।
ध्यान रहे नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की थी। यह आम धारणा है कि नीतीश की मर्जी के खिलाफ आरसीपी केंद्र में मंत्री बने थे। नीतीश चाहते थे कि उनकी पार्टी के तीन लोग मंत्री बनें लेकिन भाजपा तैयार नहीं हुई। तब नीतीश ने सरकार में शामिल होने से इनकार किया लेकिन आरसीपी इसके बावजूद मंत्री बन गए। तभी से दोनों के संबंध बिगड़े और अंततः जब उनका कार्यकाल समाप्त हुआ तो जदयू ने उनको फिर राज्यसभा में नहीं भेजा। ध्यान रहे उस समय नीतीश की पार्टी भाजपा के साथ थी। फिर भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी मर्जी के बगैर आरसीपी को मंत्री बनाए रखा। कहा जा रहा है कि बिल्कुल उसी अंदाज में हरिवंश का मामला भी नीतीश हैंडल करेंगे। वे उनकी सदस्यता समाप्त करने के लिए चिट्ठी नहीं लिखेंगे। यथास्थिति रहने देंगे और जब उनका कार्यकाल समाप्त होगा तो उन्हें फिर राज्यसभा नहीं भेजा जाएगा।